नमस्कार...


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Saturday, December 18, 2010

दिग्गी राजा ने मचाया हुआ कैसा ये बवाल है,
करकरे की शहादत पर भी खड़ा एक सवाल है,
ऐसे में कैसे झेलेंगी गोलियां, खाकी अपने सीने पर
जिस देश में खादी का ये बुरा घिनौना हाल है!!!

हेमंत करकरे पर राजनीति करना दिग्गी की मगरुरी है,
चुप बैठी है दिल्ली फिर भी, कैसी ये मज़बूरी है,
जो करते है बार-बार अपमानित वर्दी की निष्ठा को
ऐसे नमक हरामो की जीभ खींचना बहुत जरुरी है.

मुक्तक

आदर्श सोसाइटी घोटाले में दिल्ली का सिंहासन भी भागी है,
सैनिको के इस अपमान में दस जनपथ भी दागी है,
और  अगर यह सच लिखना  बगावत  है  तो
हमें  गर्व  है  कहने  में,  हाँ हम भी बागी है !!!

Monday, October 18, 2010

हिंदुस्तान का बाज़ार

नाम बिक रहा है , मान बिक रहा है
कौड़ियो के भाव इंसाने बिक रहा है
आज कैसा जमाना आ गया है दोस्तों
विधि के हाथो विधान बिक रहा है

नादान बिक रहा है , हैवान बिक रहा है
u.p, mp, बंगाल , राजस्थान बिक रहा है
इन संतरियो के हाथो , मंत्रियों के हाथो
दलालों की मंदी में हिंदुस्तान बिक रहा है

हिन्दू बिक रहा है , मुसलमान बिक रहा है
और तो और खुद भगवान बिक रहा है
और ऐसे बिक रहा है , जैसे बाजार में
खुलेआम सडको पर सामान बिक रहा है

बुद्धि बिक रही है , ईमान बिक रहा है
शिक्षा के मन्दिरों में ज्ञान बिक रहा है
अब तो हालत हो गए है ऐसे की
परीक्षा से पहले परिणाम बिक रहा है

मीडिया बिक रही है , प्रशाशन बिक रहा है
न्यायधिशो के हाथो फरमान बिक रहा है
लोकतंत्र की दीवारे क्यों लगी है टूटने
लगता है ऐसे की संविधान बिक रहा है .

Thursday, September 30, 2010

IMS की मस्तियाँ

ये रचना मेरे कॉलेज दिनों की है, जब मैं ims देहरादून में mba में पढ़ा करता था. उन दो सालो में हमने खूब मस्तिया की, और आज मैं उन दिनों को और अपने कॉलेज के दोस्तों को बहुत miss कर रहा हूँ. इस कविता के माध्य्यम से मैंने अपने कॉलेज लाइफ की मस्तियो को एक रचना में समाकलित करने की कोशश की है. ये कविता मेरे कॉलेज के दोस्तों को समर्पित है.

आज ims का पहला दिन मुझे याद आ रहा है
वक़्त मुझे दो साल पीछे ले जा रहा है
साठ बच्चो का section , कैसे काटेंगे ये दो साल
साढ़े नौ से साढ़े पाँच तक तो मैं हो जाऊंगा बेहाल
पर ये दो साल न जाने कैसे बीत गए,
पहले सेमेस्टर से चौथे सेमेस्टर तक कैसे पहुँच गए
इन दो सालों में न जाने कितने दोस्त बन गए
छोटे छोटे अफसाने मीठी मीठी यादें बन गए
हर lecture के बाद हमेशा बाहर जाना
बाहर जाकर सीढियों तक घूम कर आना
क्लास रूम में तो कभी पढना ही न था
faculty से तो कभी डरना ही न था
finance के lecture में पीछे वाली सीट पर सो जाना
मार्केटिंग के period में किसी की यादो में सो जाना
चाहे कोई भी हो lecture प्रोक्सी जरुर लगवाना
चाहे बच्चे हो तीस, पर attendence पचास की लगवाना
लैब के lecture में हमेशा ऑरकुट ही है खोलना
अगर ऑरकुट है ब्लाक तो प्रोक्सी से खोलना
इन चार सेमेस्टर में चार hod बदल गए
पर हम न बदले हमारे teacher बदल गए
लास्ट बेंच से उडाना वो गुब्बारे और हवाई जहाज
और फिर वही से निकालना कुत्ते- बिल्ली की आवाज,
कभी तालिया पीटना, तो कभी डेस्क पर तबले बजाना
और कभी कभी तो किसी का भी हैप्पी बर्थडे मनवाना
वो फ्रेंच के teacher का बार-बार क्लास छोड़ कर जाना
और बार-बार ही सॉरी कह कह कर वापिस लाना
ब्रेक का बाद वो massbunk कराना
और उसके बाद शिव मंदिर चाय पीने जाना
क्लास में दूसरो के tiffin को खा जाना
और इन्टरनल में हमेशा ही पर्चिया कराना,
assignment हमेशा लास्ट डेट का बाद submit करना
और प्रोजेक्ट रिपोर्ट तो कट-कॉपी-पेस्ट करना
वो बर्थडे की पार्टिया याद आ रही है
वो ढाबे की चाय हमको सता रही है
न रहेंगे कल ये दिन, न रहेंगी ये राते
ना जाने कब होगी दोस्तों से मुलाकाते
अब न मिलेगी मस्तिया, ना dean सर की डांटे,
कॉलेज के बाहर तो मिलेगी दुनिया भर की लाते
जीवन में सब खुश रहे, कामयाबी को छू जाये
अब तो यही है इस दिल से दुआए
कुछ दिनों में ही हम यहाँ से चले जायेंगे
ये ims के दिन हमेशा याद आयेंगे,
इन दोस्ती की यादो को दूर तक लिए जाना
ये कविता भले ही ना याद रहे, इस कवि को ना भूल जाना.

Friday, September 24, 2010

गणेश विसर्जन

बड़ी धूमधाम से गणेशोत्सव का समापन हो गया
और करोडो-अरबो रुपयों का स्वाहा हो गया
गणेशोत्सव पर देशभर में बड़ी खुशिया मनाई गयी
और एक लाख ग्यारह हज़ार बहत्तर मुर्तिया समुद्र में बहाई गयी
पास्टर ऑफ़ पेरिस की बनी मुर्तिया समुद्र का उद्धार करेगी
और दो-चार दिन बाद करोडो मछलिया मरी हुई समुद्र के बाहर मिलेगी
गणेश विसर्जन की इस परम्परा ने सभी के पाप धो दिए
और विसर्जन में चौदह लोगो ने अपने प्राण खो दिए
फिर भी हमारी गणपति से है यही विनती सदा
गणपति बप्पा, अगले बरस तू जल्दी आ.

Friday, September 17, 2010

हिंदी की दुर्दशा

अभी हिंदी दिवस से अगले दिन की ही तो बात है
एक वास्तविक घटना घटी मेरे साथ है
mba में साथ पढने वाले मेरे एक मित्र ने मुझे फ़ोन किया
और मुझसे एक प्रश्न किया
कि ये अर्थव्यवस्था का क्या मतलब होता है?
मैंने कहा,
तुमने क्या
mba में नही पढ़ा?
अर्थव्यवस्था का क्या मतलब होता है?
बोला, हमने तो mba अंग्रेजी में पढ़ा है
अर्थव्यवस्था की अंग्रेजी क्या है?
मैंने बताया, अर्थव्यवस्था economy को बोलते है
अंग्रेजी में अर्थव्यवस्था को इकोनोमी बोलते है
उसने कहा, ठीक है आगे तो पता है
इकोनोमी क्या है,

सोच रहा हूँ ये क्या हो रहा है?
विकास की दौड़ में देश कहाँ खो रहा है
हिंदी के इतने आसान प्रचलित शब्दों का मतलब नही पता है
ये हिंदी की दुर्दशा नही तो फिर क्या है?
पर तभी सोचता हूँ, शायद मैं ही कही खो गया हूँ
जिन्दगी की दौड़ में, शायद मैं ही पीछे रह गया हूँ
सोच ही रहा था की अगले दिन उसका फिर फ़ोन आता है
विभोर भाई, आयात, निर्यात का क्या मतलब होता है

Tuesday, September 14, 2010

हिंदी दिवस पर विशेष

हर वर्ष की तरह इस बार भी हिंदी दिवस आया है
हिंदी सप्ताह व पखवाड़े के मनाने का दिन छाया है
इस बार भी हिंदी दिवस पर तरह तरह के आयोजन होंगे
हिंदी भाषा का प्रयोग करे, इस तरह के प्रायोजन होंगे
इस बार फिर हिंदी भाषा का रोना रोया जायेगा
हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए फिर बीज बोया जायेगा
पर हिंदी के इस बीज से फसल कहाँ हो पायेगी
अन्य भाषाओ से यह यूँही दबा दी जाएगी

दुःख तो हिंदी को होता है जब,
हिंदी से रोटी खाने वाले भी जब
आमतौर पर हिंदी भाषा से ही परहेज करते है
और अंग्रेजी भाषा का प्रयोग धडल्ले से करते है
वैसे तो देश में टीवी पर हिंदी चैनलों की भरमार है
हिंदी पत्रिकाओ के साथ- साथ बहुत से हिंदी अखबार है
पर क्या  इन सब के बावजूद  हिंदी को सम्मान मिल रहा है?
या गलत शब्दों के मेल-जोल से हिंदी का दिल छिल रहा है

हिंदी सिर्फ नही है एक भाषा,
न ही किसी देश की परिभाषा
हिंदी भारत की संस्कृति और सभ्यता की पहचान है
जिस पर हम सभी भारतवासियों को अभिमान है
हिंदी भाषा पूरे भारत को एकता में जोडती है
भारत को बंधक बनाने वाली हर बेडी को तोडती है
हिंदी भारत की आजादी लेन वाली एक चिंगारी है
जिसने फिरंगी दुश्मनों के मुंह पर ठोकर मारी है

इसलिए हमे हिंदी का अपमान नही, सम्मान करना चहिये
हिंदी लिखने-बोलने में शर्म नही, अभिमान करना चहिये
हिंदी के इस देश में गूंज उठे एक नारा
हिंदी है हम, वतन है हिंदोस्ता हमारा

Saturday, September 11, 2010

जिन्दगी और सिगरेट

किसी  ने  मुझसे  पुछा  जिन्दगी  क्या  होती  है 
मैंने  कहा ,  जिन्दगी  सिगरेट  की  तरह  होती  है 
जिंदगी  सिगरेट  के  जैसे  ही  तो  सुलग  रही  होती  है 
और  दोनों  के  ही  अन्दर  एक  आग  जल  रही  होती  है 
तुम  जी  सको  तो  जिन्दगी  अच्छी  तरह  से  जी  लेना 
सुख -दुःख , खुशी -गम  सब  सिगरेट  की  तरह  पी  लेना 
वरना  जिन्दगी , एक  दिन  तो  खत्म  हो  ही  जाएगी 
और  सिगरेट  के  जैसे , राख  में  भस्म  हो  ही  जाएगी .
कोई मतलब नहीं बनता है ऐसी झूटी आजादी का
जहाँ खूनी खेल रचा जा रहा हो मुल्क की बरबादी का
जहाँ रुपयों में बदल गया हो देश्धर्म भी खादी का
जहाँ मौत का हुक्म दिया जा रहो एक गोत्र में शादी का

संसद में हंगामा बरपा है, एक खेलो के आयोजन पर
पर कोई चर्चा नही होती यहाँ भूखो के भोजन पर
करोड़ो टन अनाज सड जाता है सरकारी गोदामों में
दूसरी तरफ आग लगी है, गेंहू, चावल के दामो में
भूखे पेटों से जाकर पूछो, क्या मतलब होता है आजादी का
कोई मतलब नहीं बनता है ऐसी झूटी आजादी का.

आजकल न जाने...

आजकल  मैं  न  जाने  क्यों  कुछ  लिखने  लगा हूँ
ना    चाहते    हुए  भी  परेशान  सा   दिखने  लगा  हूँ
ये  भविष्य  की    चिंताए  है  या  वर्तमान  के  दुःख
इन्ही    बातो   को   सोच  कर    मैं   डरने   लगा    हूँ

सोचा  था  कभी  दुनिया  को  कुछ  करके  दिखाना  है
अपने     आप   को  दुनिया  की    भीड़  से   हटाना  है
पर     अब    तो   इस    भीड़  में    ही  लुटने  लगा  हूँ
अन्दर   ही    अन्दर   अब    तो   घुटने    लगा    हूँ

अब    तो    वो   हालत     हो     गए    है    अपने
ना    आते    है       कोई    ख्वाब ,   ना    कोई  सपने
इन    सपनो  की  दुनिया  से  क्यों  सिमटने  लगा  हूँ
अपने     आप  से     ही   आज कल  निबटने  लगा  हूँ

कहाँ   गया    वो  चेहरा  जो  हमेशा  चहकता  था
वो  प्यार   जो  दिल  में   रोजाना   महकता  था
इस  भीड़  भरी  दुनिया  में  क्यों  खोने  लगा  हूँ
अब  तो  हँसते  हँसते  हुए  भी  मैं  रोने  लगा  हूँ

क्यों  याद  आ  रही  है   वो  बचपन  की  बाते
वो   प्यारे   प्यारे  दिन   वो   सुहानी     राते
अब  तो  रातो  में  खुद  को जलाने   लगा  हूँ 
तन्हाइयों    में   खुद   को  बसाने  लगा  हूँ

मुझ  में  नही  है  शायद  कोई  योग्यता
इसी  बात  को  दुनिया  को  बताने  लगा  हूँ
आजकल  मैं  न  जाने  क्यों  कुछ  लिखने  लगा  हूँ.

Monday, August 23, 2010

आत्महत्या का अधिकार

ना चहिये मुझे सूचना का अधिकार,
ना ही चहिये मुझे शिक्षा का अधिका,र
अगर कर सकतो हो मुझ पर कोई उपकार
तो दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार.

क्या करूँगा मैं भेजकर अपने बच्चो को
स्कूल में,
जबकि मैं उन्हें नही खिला सकता
भरपेट भोजन भी,
ना ही उन्हें दिला सकता हूँ वो अनाज,
जो किया था पैदा हमने,
और आज सड रहा सरकारी गोदामों में,
अगर बच्चे पढ़ भी लेंगे तो क्या मिल पायेगा उन्हें रोजगार
अगर नही तो दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार.

मैं जानता हूँ,
सैकड़ो योजनाये चली हुई है
सरकार की,
हम गरीबो के लिए,
कभी नरेगा के नाम से,
तो कभी मनरेगा के नाम से,
और कभी अन्तोदय योजना,
पर क्या वास्तव में मिलता है मुझे इससे लाभ
या यूँ ही कर दिए करोड़ो-अरबो रुपये ख़राब
अगर नही रोक सकते हो ये भ्रष्टाचार,
तो फिर दे ही दो मुझे आत्महत्या का अधिकार.

और मैं ये अकेला नही हूँ,
जो मांग रहा हूँ ये अधिकार,
मेरे साथ है विदर्भ जैसे इलाको के भूखे-नंगे किसान,
और वो मजदूर,
जो एक दिन में बीस रुपये भी नही कमा पाते,
और साथ में है वे इन्सान
जो अक्सर कहते रहते है
गरीबी नही, गरीब हटाओ,
अपना भारत देश बचाओ
जब मचा हुआ है चारो और इतना हाहाकार
तो फिर दे ही दो ना मुझे आत्महत्या का अधिकार

क्यों कर रहे हो इतना सोच विचार
जब चारो और है बस यही गुहार
खुद होंगे अपनी मौत के जिम्मेदार
अब तो दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार

Thursday, August 19, 2010

बेरोजगारी का दर्द

बेरोजगारी का आलम तो देखिये जनाब, हम कितना इसमें तड़प रहे है,
कल तो बस लिखते थे निबंध इस पर, आज खुद ही इस दौर से गुजर रहे है.

जुल्म तो देखिये बेरोजगारी का, हम कैसे कैसे ताने सह रहे है,
कब तक खाओगे बाप की कमाई, अब तो पडौसी भी हमसे कह. रहे है.

सपनो के जो बांधे थे पुल, वो भी ताश के पत्तो की तरह ढह रहे है,
उंचाइयो को छूने के थे जो अरमान, वो भी आंसुओ में बह रहे है.

मत पूछिए कोशिशो में क्या क्या दांव-पेंच नही भिड़ा रहे है,
फिर भी ये डिग्री और certificates हमको बेरोजगार कह कर चिढ़ा रहे है.

बेरोजगारी की इस महाबीमारी में, सभी तो रिश्ते तोड़ रहे है,
जिन्हें कहा करते थे हम अपना, वो भी हमसे मुंह मोड़ रहे है.

जो जिन्दगी लगा करती थी हसीं, उसी जिन्दगी से डर रहे है,
ये तो हम जानते है बेरोजगारी में, जिन्दगी जी रहे है या मर रहे है.

Wednesday, August 18, 2010

रिंगटोन और विदाई-


शादी के समारोह में चल रही थी विदाई,
दुल्हे के साथ-साथ चल रही दुल्हन थी कुछ घबराई
रोती हुई दुल्हन को दूल्हा चुप किये जा रहा था
तुम्हे रखूँगा सदा खुश ये वादे दिए जा रहा था
जैसे ही दूल्हा ने दुल्हन को  कार में बैठाया,
तभी किसी ने दुल्हे के मोबाइल पर कॉल मिलाया
दुल्हे के मोबाइल पर रिंगटोन बजने लगी,
तो दुल्हन के दिल की धड़कन तेजी से धडकने लगी
वो कार से उतरी और दुल्हे के गाल पर दिया खींच के चांटा
और उसके बाद दुल्हे को अच्छी तरह से डांटा
सभी थे हैरान-परेशान,  ये घटना क्या घटी
वास्तव में दुल्हे के मोबाइल पर ये रिंगटोन थी बजी
"दिल में छुपा के प्यार का तूफ़ान ले चले
हम आज अपनी मौत का सामान ले चले".
-विभोर गुप्ता

नौजवानों से दो बाते....

नौजवान  उठ  खड़े  हो , सुनो  देश  की  पुकार  को
राजधानिया  पुकार  रही  है  , गद्दी  पर  सिंहो   की  दहाड़  को
बचपना  अब  छोड़  दो , भूल  जाओ  माँ  के  लाड  प्यार  को
अस्त्र  शस्त्र  तुम  उठा  लो , चीर  दो  सागर  और  पहाड़  को

बहुत  हो  गयी  है  लड़ाई  मंदिर - मस्जिद  के  ऊपर
बहुत  खून  खराबा  हो  गया  है  जाति  मजहब  के  ऊपर
कुर्सिया  बदल  गयी  है  राम  मंदिर  के  लिए
खूब  लाशे  बिछ  गयी  है  बाबरी  मस्जिद  के  लिए
जनता  बंट  गयी  है  देखो  मजहबी  नाम  पर
सर  कट  गए  है  देखो  रहीम  और  राम  पर
कुर्सिया  अब  तुम  पकड़  लो , बदल  दो  सरकार  को
राजधानिया  पुकार  रही  है  , गद्दी  पर  सिंहो   की  दहाड़  को

देश  की  तरफ  तो  देखो  कानून  है  मरा  पड़ा
सुप्रीम  कोर्ट  भी  तो  देखो  मुकदमो  से  भरा  पड़ा
कोई  जू  नही  रेंगती   यहाँ  प्रशाशन  के  कानो  में
दारू  के  अड्डे   बन  गए  चौकियो  और  थानों  में
अबला  स्त्री  की  इज्जत  लुटी जा   रही  है  नोटों  पर
गरीब  की  बहु -बेटी  बैठाई  जा  रही  है  कोठो   पर
कोई  नही  सुन  रहा  गरीब  की  गुहार  यहाँ
हर  तरफ  ही  तो  देखो  एक  ही  पुकार  यहाँ
कोई  तो  हो  ऐसा  जो  सुधार  दे  इस  बिगाड़  को
राजधानिया  पुकार  रही  है  , गद्दी  पर  सिंहो   की  दहाड़  को

गोलू और exam

Examiner   ने  गोलू  से  पूछा, तुम  क्यों  लग  रहे  हो  इतने  परेशान
क्या admit कार्ड भूल आये हो, या पेन, पेंसिल या और सामान
गोलू रुमाल से पसीना पोछने लगा,
फिर खड़ा होकर बोलने लगा
मास्टर जी पूरी तयारी के साथ आया हूँ,
पेन, पेंसिल, admitcard तो सब साथ लाया हूँ
पर मेरी किस्मत मुझे न जाने कहाँ ले जाएगी,
लगता है पूरी रात की मेहनत बेकार ही जाएगी
सारी रात जो बनायीं थी पर्चिया, वो तो मैं घर पर ही भूल आया हूँ
और कल वाले पेपर की पर्चिया, मैं गलती से आज ले आया हूँ.

Tuesday, August 17, 2010

वीर शहीदों को नमन-


(यह रचना मेरी प्रथम रचना है, जो मैंने अपने कॉलेज के दिनों में लिखी थी. यह रचना उन सब शहीदों को समर्पित है जिन्होंने भारत देश की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए.)

मैं आंसू आंसू रोया हूँ
कुछ रातों से ना सोया हूँ
जो सीमाओं पर बिछुड़ गए
उनकी यादों में खोया हूँ
जो सुहागरात पर नयी नवेली दुल्हन को छोड़ कर चले गए
जो इकलौते होकर भी सीमा पर लड़ने चले गए
जो रण में शोलों के आगे लाश बिछाने चले गए
जो हँसते हँसते प्राणों की बलि चढ़ने चले गए
उन वीर शहीदों की कहानी,  मैं लिखते लिखते रोया हूँ
जो सीमाओं पर बिछुड़ गए उनकी यादों में खोया हूँ
एक माँ अपने बेटे को लहू का टीका करती है
तुम्हारी हो दीर्घायु,  ये दुआ हमेशा करती है
बेटे के इंतज़ार में निगाहें टक टक करती है
पर एक बिना सर की लाश आँगन में उतरती है
क्या बीती होगी माँ के दिल पर, ये सोच-सोच मैं रोया हूँ
जो सीमाओं पर बिछुड़ गए उनकी यादों में खोया हूँ
आज भी रक्षाबंधन पर बहन का हृदय जब रोता है
क्या कहती होगी माँ, जब बेटा पापा पापा कहकर रोता है
चुपके चुपके रोती होंगी आँखें, जब-जब करवा चौथ होता है
लग जाती होगी आग मन में,  जब-जब सावन होता है
इस सावन की बारिशों में, मैं हरदम हरपल रोया हूँ
जो सीमाओं पर बिछुड़ गए उनकी यादों में खोया हूँ
जो सीमाओ पर लड़ते रहे, केवल तिरंगे के लिए
ख़ून की नदियाँ बहाते रहे, केवल तिरंगे के लिए
जिनके प्राणों की आहुति भारत माँ पर बलिहारी है
उनके शौर्य के तेज से सूरज की किरणें भी हारी हैं
उन बेटों का बलिदान हर भारतवासी पर क़र्ज़ होगा
उन वीरों का नाम तो स्वर्ण अक्षर में दर्ज होगा
आज शहीदों की आत्माएँ पुकार रही है हिन्दुस्तान को
नौजवान तैयार हो जाये देश पर बलिदान को
उन शहीदों की चिताओं को मैं कन्धा देते देते रोया हूँ
जो सीमाओं पर बिछुड़ गए उनकी यादों में खोया हूँ.