नमस्कार...


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Monday, August 23, 2010

आत्महत्या का अधिकार

ना चहिये मुझे सूचना का अधिकार,
ना ही चहिये मुझे शिक्षा का अधिका,र
अगर कर सकतो हो मुझ पर कोई उपकार
तो दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार.

क्या करूँगा मैं भेजकर अपने बच्चो को
स्कूल में,
जबकि मैं उन्हें नही खिला सकता
भरपेट भोजन भी,
ना ही उन्हें दिला सकता हूँ वो अनाज,
जो किया था पैदा हमने,
और आज सड रहा सरकारी गोदामों में,
अगर बच्चे पढ़ भी लेंगे तो क्या मिल पायेगा उन्हें रोजगार
अगर नही तो दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार.

मैं जानता हूँ,
सैकड़ो योजनाये चली हुई है
सरकार की,
हम गरीबो के लिए,
कभी नरेगा के नाम से,
तो कभी मनरेगा के नाम से,
और कभी अन्तोदय योजना,
पर क्या वास्तव में मिलता है मुझे इससे लाभ
या यूँ ही कर दिए करोड़ो-अरबो रुपये ख़राब
अगर नही रोक सकते हो ये भ्रष्टाचार,
तो फिर दे ही दो मुझे आत्महत्या का अधिकार.

और मैं ये अकेला नही हूँ,
जो मांग रहा हूँ ये अधिकार,
मेरे साथ है विदर्भ जैसे इलाको के भूखे-नंगे किसान,
और वो मजदूर,
जो एक दिन में बीस रुपये भी नही कमा पाते,
और साथ में है वे इन्सान
जो अक्सर कहते रहते है
गरीबी नही, गरीब हटाओ,
अपना भारत देश बचाओ
जब मचा हुआ है चारो और इतना हाहाकार
तो फिर दे ही दो ना मुझे आत्महत्या का अधिकार

क्यों कर रहे हो इतना सोच विचार
जब चारो और है बस यही गुहार
खुद होंगे अपनी मौत के जिम्मेदार
अब तो दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार

Thursday, August 19, 2010

बेरोजगारी का दर्द

बेरोजगारी का आलम तो देखिये जनाब, हम कितना इसमें तड़प रहे है,
कल तो बस लिखते थे निबंध इस पर, आज खुद ही इस दौर से गुजर रहे है.

जुल्म तो देखिये बेरोजगारी का, हम कैसे कैसे ताने सह रहे है,
कब तक खाओगे बाप की कमाई, अब तो पडौसी भी हमसे कह. रहे है.

सपनो के जो बांधे थे पुल, वो भी ताश के पत्तो की तरह ढह रहे है,
उंचाइयो को छूने के थे जो अरमान, वो भी आंसुओ में बह रहे है.

मत पूछिए कोशिशो में क्या क्या दांव-पेंच नही भिड़ा रहे है,
फिर भी ये डिग्री और certificates हमको बेरोजगार कह कर चिढ़ा रहे है.

बेरोजगारी की इस महाबीमारी में, सभी तो रिश्ते तोड़ रहे है,
जिन्हें कहा करते थे हम अपना, वो भी हमसे मुंह मोड़ रहे है.

जो जिन्दगी लगा करती थी हसीं, उसी जिन्दगी से डर रहे है,
ये तो हम जानते है बेरोजगारी में, जिन्दगी जी रहे है या मर रहे है.

Wednesday, August 18, 2010

रिंगटोन और विदाई-


शादी के समारोह में चल रही थी विदाई,
दुल्हे के साथ-साथ चल रही दुल्हन थी कुछ घबराई
रोती हुई दुल्हन को दूल्हा चुप किये जा रहा था
तुम्हे रखूँगा सदा खुश ये वादे दिए जा रहा था
जैसे ही दूल्हा ने दुल्हन को  कार में बैठाया,
तभी किसी ने दुल्हे के मोबाइल पर कॉल मिलाया
दुल्हे के मोबाइल पर रिंगटोन बजने लगी,
तो दुल्हन के दिल की धड़कन तेजी से धडकने लगी
वो कार से उतरी और दुल्हे के गाल पर दिया खींच के चांटा
और उसके बाद दुल्हे को अच्छी तरह से डांटा
सभी थे हैरान-परेशान,  ये घटना क्या घटी
वास्तव में दुल्हे के मोबाइल पर ये रिंगटोन थी बजी
"दिल में छुपा के प्यार का तूफ़ान ले चले
हम आज अपनी मौत का सामान ले चले".
-विभोर गुप्ता

नौजवानों से दो बाते....

नौजवान  उठ  खड़े  हो , सुनो  देश  की  पुकार  को
राजधानिया  पुकार  रही  है  , गद्दी  पर  सिंहो   की  दहाड़  को
बचपना  अब  छोड़  दो , भूल  जाओ  माँ  के  लाड  प्यार  को
अस्त्र  शस्त्र  तुम  उठा  लो , चीर  दो  सागर  और  पहाड़  को

बहुत  हो  गयी  है  लड़ाई  मंदिर - मस्जिद  के  ऊपर
बहुत  खून  खराबा  हो  गया  है  जाति  मजहब  के  ऊपर
कुर्सिया  बदल  गयी  है  राम  मंदिर  के  लिए
खूब  लाशे  बिछ  गयी  है  बाबरी  मस्जिद  के  लिए
जनता  बंट  गयी  है  देखो  मजहबी  नाम  पर
सर  कट  गए  है  देखो  रहीम  और  राम  पर
कुर्सिया  अब  तुम  पकड़  लो , बदल  दो  सरकार  को
राजधानिया  पुकार  रही  है  , गद्दी  पर  सिंहो   की  दहाड़  को

देश  की  तरफ  तो  देखो  कानून  है  मरा  पड़ा
सुप्रीम  कोर्ट  भी  तो  देखो  मुकदमो  से  भरा  पड़ा
कोई  जू  नही  रेंगती   यहाँ  प्रशाशन  के  कानो  में
दारू  के  अड्डे   बन  गए  चौकियो  और  थानों  में
अबला  स्त्री  की  इज्जत  लुटी जा   रही  है  नोटों  पर
गरीब  की  बहु -बेटी  बैठाई  जा  रही  है  कोठो   पर
कोई  नही  सुन  रहा  गरीब  की  गुहार  यहाँ
हर  तरफ  ही  तो  देखो  एक  ही  पुकार  यहाँ
कोई  तो  हो  ऐसा  जो  सुधार  दे  इस  बिगाड़  को
राजधानिया  पुकार  रही  है  , गद्दी  पर  सिंहो   की  दहाड़  को

गोलू और exam

Examiner   ने  गोलू  से  पूछा, तुम  क्यों  लग  रहे  हो  इतने  परेशान
क्या admit कार्ड भूल आये हो, या पेन, पेंसिल या और सामान
गोलू रुमाल से पसीना पोछने लगा,
फिर खड़ा होकर बोलने लगा
मास्टर जी पूरी तयारी के साथ आया हूँ,
पेन, पेंसिल, admitcard तो सब साथ लाया हूँ
पर मेरी किस्मत मुझे न जाने कहाँ ले जाएगी,
लगता है पूरी रात की मेहनत बेकार ही जाएगी
सारी रात जो बनायीं थी पर्चिया, वो तो मैं घर पर ही भूल आया हूँ
और कल वाले पेपर की पर्चिया, मैं गलती से आज ले आया हूँ.

Tuesday, August 17, 2010

वीर शहीदों को नमन-


(यह रचना मेरी प्रथम रचना है, जो मैंने अपने कॉलेज के दिनों में लिखी थी. यह रचना उन सब शहीदों को समर्पित है जिन्होंने भारत देश की रक्षा के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए.)

मैं आंसू आंसू रोया हूँ
कुछ रातों से ना सोया हूँ
जो सीमाओं पर बिछुड़ गए
उनकी यादों में खोया हूँ
जो सुहागरात पर नयी नवेली दुल्हन को छोड़ कर चले गए
जो इकलौते होकर भी सीमा पर लड़ने चले गए
जो रण में शोलों के आगे लाश बिछाने चले गए
जो हँसते हँसते प्राणों की बलि चढ़ने चले गए
उन वीर शहीदों की कहानी,  मैं लिखते लिखते रोया हूँ
जो सीमाओं पर बिछुड़ गए उनकी यादों में खोया हूँ
एक माँ अपने बेटे को लहू का टीका करती है
तुम्हारी हो दीर्घायु,  ये दुआ हमेशा करती है
बेटे के इंतज़ार में निगाहें टक टक करती है
पर एक बिना सर की लाश आँगन में उतरती है
क्या बीती होगी माँ के दिल पर, ये सोच-सोच मैं रोया हूँ
जो सीमाओं पर बिछुड़ गए उनकी यादों में खोया हूँ
आज भी रक्षाबंधन पर बहन का हृदय जब रोता है
क्या कहती होगी माँ, जब बेटा पापा पापा कहकर रोता है
चुपके चुपके रोती होंगी आँखें, जब-जब करवा चौथ होता है
लग जाती होगी आग मन में,  जब-जब सावन होता है
इस सावन की बारिशों में, मैं हरदम हरपल रोया हूँ
जो सीमाओं पर बिछुड़ गए उनकी यादों में खोया हूँ
जो सीमाओ पर लड़ते रहे, केवल तिरंगे के लिए
ख़ून की नदियाँ बहाते रहे, केवल तिरंगे के लिए
जिनके प्राणों की आहुति भारत माँ पर बलिहारी है
उनके शौर्य के तेज से सूरज की किरणें भी हारी हैं
उन बेटों का बलिदान हर भारतवासी पर क़र्ज़ होगा
उन वीरों का नाम तो स्वर्ण अक्षर में दर्ज होगा
आज शहीदों की आत्माएँ पुकार रही है हिन्दुस्तान को
नौजवान तैयार हो जाये देश पर बलिदान को
उन शहीदों की चिताओं को मैं कन्धा देते देते रोया हूँ
जो सीमाओं पर बिछुड़ गए उनकी यादों में खोया हूँ.