नमस्कार...


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Thursday, September 30, 2010

IMS की मस्तियाँ

ये रचना मेरे कॉलेज दिनों की है, जब मैं ims देहरादून में mba में पढ़ा करता था. उन दो सालो में हमने खूब मस्तिया की, और आज मैं उन दिनों को और अपने कॉलेज के दोस्तों को बहुत miss कर रहा हूँ. इस कविता के माध्य्यम से मैंने अपने कॉलेज लाइफ की मस्तियो को एक रचना में समाकलित करने की कोशश की है. ये कविता मेरे कॉलेज के दोस्तों को समर्पित है.

आज ims का पहला दिन मुझे याद आ रहा है
वक़्त मुझे दो साल पीछे ले जा रहा है
साठ बच्चो का section , कैसे काटेंगे ये दो साल
साढ़े नौ से साढ़े पाँच तक तो मैं हो जाऊंगा बेहाल
पर ये दो साल न जाने कैसे बीत गए,
पहले सेमेस्टर से चौथे सेमेस्टर तक कैसे पहुँच गए
इन दो सालों में न जाने कितने दोस्त बन गए
छोटे छोटे अफसाने मीठी मीठी यादें बन गए
हर lecture के बाद हमेशा बाहर जाना
बाहर जाकर सीढियों तक घूम कर आना
क्लास रूम में तो कभी पढना ही न था
faculty से तो कभी डरना ही न था
finance के lecture में पीछे वाली सीट पर सो जाना
मार्केटिंग के period में किसी की यादो में सो जाना
चाहे कोई भी हो lecture प्रोक्सी जरुर लगवाना
चाहे बच्चे हो तीस, पर attendence पचास की लगवाना
लैब के lecture में हमेशा ऑरकुट ही है खोलना
अगर ऑरकुट है ब्लाक तो प्रोक्सी से खोलना
इन चार सेमेस्टर में चार hod बदल गए
पर हम न बदले हमारे teacher बदल गए
लास्ट बेंच से उडाना वो गुब्बारे और हवाई जहाज
और फिर वही से निकालना कुत्ते- बिल्ली की आवाज,
कभी तालिया पीटना, तो कभी डेस्क पर तबले बजाना
और कभी कभी तो किसी का भी हैप्पी बर्थडे मनवाना
वो फ्रेंच के teacher का बार-बार क्लास छोड़ कर जाना
और बार-बार ही सॉरी कह कह कर वापिस लाना
ब्रेक का बाद वो massbunk कराना
और उसके बाद शिव मंदिर चाय पीने जाना
क्लास में दूसरो के tiffin को खा जाना
और इन्टरनल में हमेशा ही पर्चिया कराना,
assignment हमेशा लास्ट डेट का बाद submit करना
और प्रोजेक्ट रिपोर्ट तो कट-कॉपी-पेस्ट करना
वो बर्थडे की पार्टिया याद आ रही है
वो ढाबे की चाय हमको सता रही है
न रहेंगे कल ये दिन, न रहेंगी ये राते
ना जाने कब होगी दोस्तों से मुलाकाते
अब न मिलेगी मस्तिया, ना dean सर की डांटे,
कॉलेज के बाहर तो मिलेगी दुनिया भर की लाते
जीवन में सब खुश रहे, कामयाबी को छू जाये
अब तो यही है इस दिल से दुआए
कुछ दिनों में ही हम यहाँ से चले जायेंगे
ये ims के दिन हमेशा याद आयेंगे,
इन दोस्ती की यादो को दूर तक लिए जाना
ये कविता भले ही ना याद रहे, इस कवि को ना भूल जाना.

Friday, September 24, 2010

गणेश विसर्जन

बड़ी धूमधाम से गणेशोत्सव का समापन हो गया
और करोडो-अरबो रुपयों का स्वाहा हो गया
गणेशोत्सव पर देशभर में बड़ी खुशिया मनाई गयी
और एक लाख ग्यारह हज़ार बहत्तर मुर्तिया समुद्र में बहाई गयी
पास्टर ऑफ़ पेरिस की बनी मुर्तिया समुद्र का उद्धार करेगी
और दो-चार दिन बाद करोडो मछलिया मरी हुई समुद्र के बाहर मिलेगी
गणेश विसर्जन की इस परम्परा ने सभी के पाप धो दिए
और विसर्जन में चौदह लोगो ने अपने प्राण खो दिए
फिर भी हमारी गणपति से है यही विनती सदा
गणपति बप्पा, अगले बरस तू जल्दी आ.

Friday, September 17, 2010

हिंदी की दुर्दशा

अभी हिंदी दिवस से अगले दिन की ही तो बात है
एक वास्तविक घटना घटी मेरे साथ है
mba में साथ पढने वाले मेरे एक मित्र ने मुझे फ़ोन किया
और मुझसे एक प्रश्न किया
कि ये अर्थव्यवस्था का क्या मतलब होता है?
मैंने कहा,
तुमने क्या
mba में नही पढ़ा?
अर्थव्यवस्था का क्या मतलब होता है?
बोला, हमने तो mba अंग्रेजी में पढ़ा है
अर्थव्यवस्था की अंग्रेजी क्या है?
मैंने बताया, अर्थव्यवस्था economy को बोलते है
अंग्रेजी में अर्थव्यवस्था को इकोनोमी बोलते है
उसने कहा, ठीक है आगे तो पता है
इकोनोमी क्या है,

सोच रहा हूँ ये क्या हो रहा है?
विकास की दौड़ में देश कहाँ खो रहा है
हिंदी के इतने आसान प्रचलित शब्दों का मतलब नही पता है
ये हिंदी की दुर्दशा नही तो फिर क्या है?
पर तभी सोचता हूँ, शायद मैं ही कही खो गया हूँ
जिन्दगी की दौड़ में, शायद मैं ही पीछे रह गया हूँ
सोच ही रहा था की अगले दिन उसका फिर फ़ोन आता है
विभोर भाई, आयात, निर्यात का क्या मतलब होता है

Tuesday, September 14, 2010

हिंदी दिवस पर विशेष

हर वर्ष की तरह इस बार भी हिंदी दिवस आया है
हिंदी सप्ताह व पखवाड़े के मनाने का दिन छाया है
इस बार भी हिंदी दिवस पर तरह तरह के आयोजन होंगे
हिंदी भाषा का प्रयोग करे, इस तरह के प्रायोजन होंगे
इस बार फिर हिंदी भाषा का रोना रोया जायेगा
हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए फिर बीज बोया जायेगा
पर हिंदी के इस बीज से फसल कहाँ हो पायेगी
अन्य भाषाओ से यह यूँही दबा दी जाएगी

दुःख तो हिंदी को होता है जब,
हिंदी से रोटी खाने वाले भी जब
आमतौर पर हिंदी भाषा से ही परहेज करते है
और अंग्रेजी भाषा का प्रयोग धडल्ले से करते है
वैसे तो देश में टीवी पर हिंदी चैनलों की भरमार है
हिंदी पत्रिकाओ के साथ- साथ बहुत से हिंदी अखबार है
पर क्या  इन सब के बावजूद  हिंदी को सम्मान मिल रहा है?
या गलत शब्दों के मेल-जोल से हिंदी का दिल छिल रहा है

हिंदी सिर्फ नही है एक भाषा,
न ही किसी देश की परिभाषा
हिंदी भारत की संस्कृति और सभ्यता की पहचान है
जिस पर हम सभी भारतवासियों को अभिमान है
हिंदी भाषा पूरे भारत को एकता में जोडती है
भारत को बंधक बनाने वाली हर बेडी को तोडती है
हिंदी भारत की आजादी लेन वाली एक चिंगारी है
जिसने फिरंगी दुश्मनों के मुंह पर ठोकर मारी है

इसलिए हमे हिंदी का अपमान नही, सम्मान करना चहिये
हिंदी लिखने-बोलने में शर्म नही, अभिमान करना चहिये
हिंदी के इस देश में गूंज उठे एक नारा
हिंदी है हम, वतन है हिंदोस्ता हमारा

Saturday, September 11, 2010

जिन्दगी और सिगरेट

किसी  ने  मुझसे  पुछा  जिन्दगी  क्या  होती  है 
मैंने  कहा ,  जिन्दगी  सिगरेट  की  तरह  होती  है 
जिंदगी  सिगरेट  के  जैसे  ही  तो  सुलग  रही  होती  है 
और  दोनों  के  ही  अन्दर  एक  आग  जल  रही  होती  है 
तुम  जी  सको  तो  जिन्दगी  अच्छी  तरह  से  जी  लेना 
सुख -दुःख , खुशी -गम  सब  सिगरेट  की  तरह  पी  लेना 
वरना  जिन्दगी , एक  दिन  तो  खत्म  हो  ही  जाएगी 
और  सिगरेट  के  जैसे , राख  में  भस्म  हो  ही  जाएगी .
कोई मतलब नहीं बनता है ऐसी झूटी आजादी का
जहाँ खूनी खेल रचा जा रहा हो मुल्क की बरबादी का
जहाँ रुपयों में बदल गया हो देश्धर्म भी खादी का
जहाँ मौत का हुक्म दिया जा रहो एक गोत्र में शादी का

संसद में हंगामा बरपा है, एक खेलो के आयोजन पर
पर कोई चर्चा नही होती यहाँ भूखो के भोजन पर
करोड़ो टन अनाज सड जाता है सरकारी गोदामों में
दूसरी तरफ आग लगी है, गेंहू, चावल के दामो में
भूखे पेटों से जाकर पूछो, क्या मतलब होता है आजादी का
कोई मतलब नहीं बनता है ऐसी झूटी आजादी का.

आजकल न जाने...

आजकल  मैं  न  जाने  क्यों  कुछ  लिखने  लगा हूँ
ना    चाहते    हुए  भी  परेशान  सा   दिखने  लगा  हूँ
ये  भविष्य  की    चिंताए  है  या  वर्तमान  के  दुःख
इन्ही    बातो   को   सोच  कर    मैं   डरने   लगा    हूँ

सोचा  था  कभी  दुनिया  को  कुछ  करके  दिखाना  है
अपने     आप   को  दुनिया  की    भीड़  से   हटाना  है
पर     अब    तो   इस    भीड़  में    ही  लुटने  लगा  हूँ
अन्दर   ही    अन्दर   अब    तो   घुटने    लगा    हूँ

अब    तो    वो   हालत     हो     गए    है    अपने
ना    आते    है       कोई    ख्वाब ,   ना    कोई  सपने
इन    सपनो  की  दुनिया  से  क्यों  सिमटने  लगा  हूँ
अपने     आप  से     ही   आज कल  निबटने  लगा  हूँ

कहाँ   गया    वो  चेहरा  जो  हमेशा  चहकता  था
वो  प्यार   जो  दिल  में   रोजाना   महकता  था
इस  भीड़  भरी  दुनिया  में  क्यों  खोने  लगा  हूँ
अब  तो  हँसते  हँसते  हुए  भी  मैं  रोने  लगा  हूँ

क्यों  याद  आ  रही  है   वो  बचपन  की  बाते
वो   प्यारे   प्यारे  दिन   वो   सुहानी     राते
अब  तो  रातो  में  खुद  को जलाने   लगा  हूँ 
तन्हाइयों    में   खुद   को  बसाने  लगा  हूँ

मुझ  में  नही  है  शायद  कोई  योग्यता
इसी  बात  को  दुनिया  को  बताने  लगा  हूँ
आजकल  मैं  न  जाने  क्यों  कुछ  लिखने  लगा  हूँ.