नमस्कार...


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Saturday, December 31, 2011

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें-

मेरे मौला इस नव वर्ष में देश की माटी को ऐसा वरदान देना
बन जाए भारत विश्व गुरु फिर से, विश्व में वो पहचान देना
शीष उठा कर जिये हिन्दुस्तानी, जहाँ में  ऐसा सम्मान देना 
नव वर्ष की मंगल बेला पर भारत भू को आन-बान-शान देना

शत्रु ना देख पाए आँख उठा कर भी, गद्दी को वो स्वाभिमान देना
प्रेम-भाव हो चारो और, जन-जन में सत्य, धर्म और ईमान देना 
भ्रष्ट, दुष्ट, पापियों को भी सदबुद्धिबल और सद्ज्ञान देना
राम-राज का हो सपना साकार धरा पर राम-कृष्ण जैसे भगवान् देना

आप सभी मित्रो को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें| ईश्वर आपके जीवन में सुख, समृद्धि, सम्पन्नता, ऐश्वर्य, और सफलता प्रदान करें|
-विभोर गुप्ता 

Wednesday, December 21, 2011

श्रीमदभगवद गीता पर प्रतिबंध-


हाल ही में रूस द्वारा श्रीमद भगवद गीता पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है| इस सन्दर्भ में मेरी एक नई रचना कुछ मुक्तकों द्वारा..... आप सभी के स्नेह एवं आशीष को आतुर...

आज कृष्ण पूछ रहे अर्जुन से एक सवाल देश में
भगवत गीता पर कैसा मचा हुआ बवाल विदेश में
हिन्दुस्तानी  संस्कृति, सभ्यता पर प्रतिबंध लगने लगा
किन्तु सत्ता लोभियों के रक्त में नहीं कोई उबाल देश में |

चुप्पी  क्यों साधे है हिन्दू, अपने विशाल देश में
कोई दूसरा धर्म होता तो आ जाता महाकाल देश में
रणभूमि में कर्म की रीत को पढ़ाने वाले पाठ का
अपमान हो रहा, आदर्श और शिष्टाचार से कंगाल देश में |

राम, कृष्ण की भूमि पर हो रहे अजब कमाल देश में
सिंहों का वंश ओढ़े हुआ गीदड़ की खाल देश में
आज गीता पर प्रतिबंध, कल रामायण पर लगेगा
हिन्दू संस्कृति को नष्ट करने की है ये चाल विदेश में |
-विभोर गुप्ता 

Monday, December 19, 2011

"टूटते सितारों की उड़ान"


मेरी नई पुस्तक "टूटते सितारों की उड़ान" एक अनोखा काव्य संग्रह...जिसमें आपको हर रस और रंग की 166 कवितायें एक साथ पढ़ने का मौका मिलेगा...यह काव्य संग्रह अब आपको प्राप्त हो सकती है.....इस काव्य संग्रह को प्राप्त करने के लिये और अपनी प्रति सुनिश्चित कराने के लिए आज ही सम्पर्क करे....

 सत्यम शिवम्- 9934405997

Thursday, December 15, 2011

कोटि-कोटि नमन-

आज विजय दिवस पर उन सभी शहीदों को श्रद्धांजलि स्वरुप एक मुक्तक, जिन्होंने 1971 के युद्ध में अपने आप को देश के लिए न्यौछावर कर दिया था|

कोटि-कोटि नमन है, जिन्होंने अपनी जान गंवाई थी
भारत माँ की रक्षा की खातिर सीने पर गोली खायी थी
इस धरती के लिए कितना शुभ मंगल दिन होगा वो
जब बलिदानी माँ की कोखों ने ऐसी संताने जन्माई थी|
-विभोर गुप्ता

Wednesday, November 30, 2011

जागो कलमकारों


देश में आज-कल का माहौल ही कुछ ऐसा ही कि लिखना पड़ रहा है.......

लाखों-करोड़ों हिन्दुस्तानी सडकों पर भूखे मर रहे है,
राजशाह लूट-लूट खजाना अपने तहखानें भर रहे है,
जागो कलमकारों, अपनी कलम से अब देश जगाओ
अरे, वतन के ठेकेदार, वतन का सौदा कर रहे है |
-विभोर गुप्ता 

Saturday, November 26, 2011

सरदारनी ने जन्म दिया

26 नवम्बर 2008 में मुंबई में आतंकी हमले के बाद भी भारतीय प्रधानमंत्री के खून गरम नहीं होने पर मैंने एक छंद लिखा था| आज तीन साल बाद उसे आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ|

सरदारनी ने जन्म दिया, सरदारनी का दूध पिया,
......................सरदारनी के आँचल की छाँव तुम पले हो
पगड़ी बाँध बन जट, सिंह उपनाम रख,
.....................गुरु गोविन्द के अनुयायियों का वेश तुम ढले हो
आन-बान-शान पर जान को लुटाने वाले
....................सिक्खों का इतिहास भूल किस हाथ तुम छले हो
कैसा ये तुम्हारा राज, कहाँ है कृपाण आज,
...................शौर्य को ठुकराकर कायरता की किस राह तुम चले हो |
-विभोर गुप्ता

Sunday, November 13, 2011

अपने छोटू का बाल दिवस


आज सुबह सुबह बाल दिवस के दिन जब मैंने कुछ छोटे छोटे बच्चों को दुकानों पर काम करते देखा तो मुझे लगा कि देश कि उन्नति और विकास का उन बच्चों का क्या लाभ मिल रहा है? एक ताजी रचना आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ, आपकी प्रतिक्रिया आमंत्रित है|

हाँ, पिछले पैंसठ सालों में देश में विदेशी निवेश बढ़ा है
और कुछ सालों से अर्थव्यवस्था का सूचकांक भी ऊपर चढ़ा है
वास्तव में अब गाँव की गलियों तक भी काली सड़कें आती है
और अब गोरी भी गगरी लेकर पानी भरने दूर नहीं जाती है
देश का नेता हर नुक्कड़ पर विकास के ढोल बजाता है
किन्तु अपना छोटू तो आज भी हवेली में ही झाडू लगाता है |

अब तो हर बच्चे को मिला हुआ शिक्षा का अधिकार है
सस्ते दामों पर कंप्यूटर उपलब्ध करा रही सरकार है
विदेशी विश्वविधालय देश में अपनी शाखाएं खोल रही है
नई पीढियां एक साथ कई-कई भाषाएँ बोल रही है
गली-गली में सर्व शिक्षा अभियान की किरण दिखाई देती है
किन्तु अपने छोटू को तो बस मालिक की डांट सुनाई देती है |

महात्मा गाँधी के नाम पर गारंटीड रोजगार मिलता है
बड़े बाबू को भी अब वेतन तीस हज़ार मिलता है
अब कोई किसी को भी कम मजदूरी पर नहीं रख सकता है
और बंधुआ मजदूर भी श्रम विभाग में केस दर्ज कर सकता है
किन्तु बाल श्रम निरोधक कानून उस समय कहाँ सोता है
जब अपना छोटू चाय की दुकान पर झूठे बर्तन धोता है |
-विभोर गुप्ता 

Tuesday, October 25, 2011

दीपों की रहे जगमग

दीपों की रहे जगमग, जीवन में ना अँधेरा हो
माँ लक्ष्मी का आपके घर आँगन में बसेरा हो
धन, वैभव, ऐश्वर्य, पैसे की ना कोई कमी हो
उल्लास, आनन्द, तेज, ज्ञान के आप धनी हो
सुख, समृद्धि, सम्पन्नता दस्तक दे आपके द्वार
दीपावली के पर्व पर आपको खुशियाँ मिले अपार.

ऐसी ही कामनाओं के साथ आपको एवं आपके परिवार को दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ...
-विभोर गुप्ता 

Wednesday, October 5, 2011

दशरथ-नंदन अवतार नहीं धरता-



विजयादशमी के पावन अवसर पर मेरे पास इससे अच्छी कोई रचना नही है. कृपया अपनी प्रतिक्रियाएं देकर इस रचना को सुभाशीष प्रदान करे. 



मेरे देश की भूमि भयभीत है दानवों के आतंक से,
           फिर भी कोई दशरथ-नंदन यहाँ अवतार नहीं धरता
मशालों पर भी कहर बन जाती है निशाचरों की भीड़,
          पुतले जलाने से रावन का वंश कभी मिटा नहीं करता

आज भी जाने कितने सीता-हरण होते है देश में
कितने रावण ढोंग करते है पाखंडियों के वेश में 
स्वर्ण-मृग बन मारीच फिर जानकियों को ललचाता है 
कितनी सीताओं की मर्यादाओं पर काल मंडराता है 

धन और बल की आड़ में निर्भीक बन गए है रावण,
          खींच लो कितनी भी, किसी लक्ष्मण रेखा से नहीं डरता

मेरे देश की भूमि भयभीत है दानवों के आतंक से,
           फिर भी कोई दशरथ-नंदन यहाँ अवतार नहीं धरता

कुम्भकर्णों के पेट भरे किन्तु फिर भी खा रहे है 
बच्चें बिलखते भूख से, पर वो दूध से नहा रहे है 
तिजोरियां भर, सात पीढ़ियों के लिए सपने संजोते है 
भले प्रजा चीखती रहे, वो महलों में चैन से सोते है 

चारा, यूरिया, ताबूत, स्पेक्ट्रम जाने क्या-क्या खाया,
          कितना भी खा ले किन्तु कुम्भकर्णों का पेट नहीं भरता 

मेरे देश की भूमि भयभीत है दानवों के आतंक से,
           फिर भी कोई दशरथ-नंदन यहाँ अवतार नहीं धरता

इन्द्रजीत ने बाँध दिया है देवों को बंधन में 
आज जहरीले सर्पों ने विष घोल दिया है चन्दन में 
धर्म-अधर्म के युद्ध में, अधर्म का पलड़ा भारी है 
निष्ठावादियों की सेनायें, भ्रष्ट कपटियों से हारी है 

आज कोई विभीषण भी तो नहीं, जो भेद ही बतला दे,
           बार-बार शीश काटने  पर भी दशानन नहीं मरता

मेरे देश की भूमि भयभीत है दानवों के आतंक से,
           फिर भी कोई दशरथ-नंदन यहाँ अवतार नहीं धरता


-विभोर गुप्ता  


Wednesday, September 28, 2011

भगत सिंह की जयंती पर कुछ पंक्तियाँ-



क़र्ज़ तूने चुकाया था अपनी माँ के दूध का, 
        पर तेरी शहादत का क़र्ज़ ना चुकेगा कभी
तेरी मजार पर भले ही ना चिराग जलते हो, 
        पर तेरी कुर्बानी का दीप ना बुझेगा कभी
क्रांति की जो मशाल जलाई थी तूने भगत, 
        उस मशाल के आगे अँधियारा ना रूकेगा कभी
भले ही सिंहासन पर तेरा वंश ना हो कोई, 
        पर इतिहास तेरे शौर्य को ना भूलेगा कभी.

-विभोर गुप्ता

माँ भवानी अवतार धरो-

यह रचना अति स्नेहदाता अग्रज दीपक सिंघल को समर्पित है. मैं बचपन से ही उनके अति दुलार और अत्यधिक सहयोग की छाँव में पला हूँ. माँ दुर्गा उन्हें धन, वैभव, ऐश्वर्य, और सुख प्रदान करे|


देवों की पावन भूमि देवियों से खाली हुई,
         भारत के संकट हरने माँ भवानी अवतार धरो
धर्म, निष्ठा के सामने आसुरी शक्तियां प्रबल  हुई,
         निशाचरों  के विनाश को माँ वाणी में ललकार भरो
अष्ट भुजाओं वाली, दुर्गे माँ  शेरावाली,
         कर अपने त्रिशूल, गदा, तीर, चक्र, तलवार धरो
भ्रष्ट, दुष्ट, पापी, माँ का दूध जो लजाते रहे,
         मुंडी उखाड़ ऐसे दुष्टों का अब संहार करो.

सूरज की किरणों को अँधियारा है निगल रहा,
         माँ दुर्गे अपने तेज से अंधियारे पर प्रहार करो
कन्या रुपी देवियों को कोख में जो मारते है,
         ऐसे पापियों को दण्डित कर, जग पर उपकार करो
विश्व को दो सद्ज्ञान, नारी का करे सम्मान,
          जन-जन का कल्याण कर, देश के दूर विकार करो
मेरे अँधेरे जीवन में भी ज्ञान की ज्योति जलाओ,

          आशीष बरसा माँ ब्रह्मानी मेरा भी उद्धार करो.
-विभोर गुप्ता 

Friday, September 16, 2011

पेट्रोल की बढ़ी कीमत


कहीं हल्ला होगा, कहीं पर शोर होगा
कहीं पुतले जलेंगे, कहीं नारों का जोर होगा
कोई सरकार को दोष देगा
तो कोई महंगाई को कोसेगा
कोई आज बाईक से नही, बस से जायेगा
तो कोई आज एक रोटी कम खायेगा
पर दो-चार दिन में जिन्दगी वहीँ पर आ जायेगी
पेट्रोल की बढ़ी कीमत कहीं एडजस्ट हो ही जाएगी.
-विभोर गुप्ता

Monday, September 12, 2011

क्रांति-ज्वाला पुस्तक

प्रिय मित्रों,
मेरी प्रथम पुस्तक क्रांति-ज्वाला प्रकाशित हो चुकी है. इस पुस्तक में जनलोकपाल बिल के लिए चलाये गये, अन्ना हजारे द्वारा आन्दोलन के दौरान लिखी मेरी सभी रचनाओं का संग्रह है.
आप इस पुस्तक को डाउनलोड कर सकते है. डाउनलोड करने के लिए लिंक पर क्लिक करे
आप इसे अपने मित्रों को भी भेज सकते है.
आपकी प्रतिक्रियाओं का स्वागत है.

धन्यवाद

-विभोर गुप्ता

https://docs.google.com/viewer?a=v&pid=explorer&chrome=true&srcid=0B0LLC_QlJ7k1ZWE3OGM5ZDEtNTZjMC00MjU1LWIwZGMtYThhNTBlYjA1YjRi&hl=en_US&pli=1

Wednesday, August 24, 2011

अपाहिज सत्ता-


राजनीति की कीचड से आज संसद की गलियाँ गन्दी है
सत्य, धर्म, ईमानदारी तो खादी के घर में बन्दी है
अंधियारों में खोट दिखाई नहीं देगी उनको, चूंकि
नैतिकता का चश्मा टूट गया, इसलिए सत्ता अंधी है.

यूं तो कहने को सरकार लोकतंत्र की प्रहरी है
पर आजकल तो उसे भी आई नींद गहरी है
पूरा देश चीख रहा है, अन्ना तुम संघर्ष करो
पर आवाजें सुनाई नहीं देती क्योंकि सत्ता बहरी है.

गद्दी पर जो बैठे है उनका काम ही है दलाल का
क्यों चाहे वो बने सख्त कानून जनलोकपाल का
देश ने पूछा उनसे, तुम भ्रष्टाचार क्यों मिटाते नहीं
पर जब शासन हो गूंगा तो कैसे जवाब दे वो सवाल का.

वो भ्रष्टाचार मिटाने की बातें तो करते दिन-रात है
पर पर्दों के पीछे वो घोटालेबाजों के ही साथ है
हमने कहा, दण्डित करो कलमाड़ी और राजाओं को
पर कैसे, सत्ता के पास तो हाथ है ना लात है.

गांधी वाली खादी अब ईमानदारी से विहीन हो गयी
माँ भारती अब तानाशाहों के घर में पराधीन हो गयी
गूंगे भी है, बहरें भी है, अन्धें भी है, लंगड़े भी है
लगता है दिल्ली अब नाकारे अपाहिजों के आधीन हो गयी.
-विभोर गुप्ता

Tuesday, August 16, 2011

तानाशाही सत्ता-


तानाशाही सत्ता के आगे लोकतंत्र कहाँ जिन्दा है
आंसू भर-भर कर आज तिहाड़ जेल भी शर्मिंदा है
तिरंगे ने बोला है आज, लाल किले की दीवारों से
तेरी ईंटों को भी खतरा है अब, तेरे ही पहरेदारों से

राजघाट चीख रहा है सत्याग्रह के अपमानों पर
कैसा खून बिखेरा तुमने ये गाँधी के अरमानो पर
प्रजा के सेवक प्रजा के अधिकारों का दमन कर बैठे
शांति के राही को ही अशांति जुर्म में अन्दर भर बैठे

लगता है शायद तुम जनता की ताकत को भूल गए
सत्ता के मद में होकर चूर, अत्याचारों में झूल गए
अब वक़्त आ गया है, तुम्हारी औकातें बतलाने का
तुम हिटलरों को जन-गण-मन की ताकत दिखलाने का

देखते है तुम अब किस-किस को भरोगे जेलों में
जाग्रित जनता निकल पड़ी है सडकों, बसों, रेलों में
अब और तुम अपनी मनमर्जी नहीं चला पाओगे
मनमर्जी तो तब चलेगी गर गद्दी पर टिक जाओगे.
-विभोर गुप्ता

काले अंग्रेज-


जिनके चेहरे काले है काले कारनामों से,
       वो अब गोरों अंग्रेजों के भी बाप बन गए है
भ्रष्टाचार मिटाने की किसे पड़ी है यारों,
        वो सब जनता के लिए अभिशाप बन गए है
कर गिरफ्तार अन्ना हजारे को आज वो
        सत्याग्राही गांधी के विरुद्ध पाप बन गए है
अंग्रेज तो अब देश से चले गए है इसीलिए
         सत्ताधारी ही फिरंगी अपने आप बन गए है
-विभोर गुप्ता

Saturday, August 13, 2011

राखी की कीमत-


एक बहन अपने भाई को राखी बांधती है, भाई अपनी बहन से पूछता है कि उसे क्या उपहार चाहिए. बहन कहती है...

ना पैसा माँगू, ना कंगन माँगू, ना माँगू बाईक या कार कोई
भैया मेरे, इस रक्षाबंधन, ना देना मुझको उपहार कोई
कदम-कदम पर हवस के शिकारी, जो घात लगाये बैठे है
बस उनके आघातों से बचने का, दे दो मुझको उपचार कोई

चाहे पैदल चलूँ या रिक्शा में, बस में हूँ या रेलों में
सडकों पर रहूँ या मैदानों में, बाजारों में हूँ या मेलों में
इक्कीसवीं सदीके समाज की कामुक नजरें जब मुझ पर टिकती
इंसानी पशुओं की देख शरारत तब मेरी साँसें तक रूकती 
लगता है मुझको जैसे धरा पर छाने वाला है अंधकार कोई
भैया मेरे, इस रक्षाबंधन, ना देना मुझको उपहार कोई
बस हैवानी नज़रों से बचने का दे दो मुझको उपचार कोई

ऑफिस में मेरा बॉस मुझको अपने केबिन में बुलाता कितनी बार
किसी न किसी बहाने से मुझे छूने की कोशिश करता कितनी बार
सीनियर हो या जूनियर हो, अब नहीं है किसी को लाज कोई
बहनें तो सबकी होती है, भला क्यों नहीं समझता आज कोई
कितना भी लज्जित कर लो, होता नहीं है शर्मशार कोई
भैया मेरे, इस रक्षाबंधन, ना देना मुझको उपहार कोई
बस हैवानी नज़रों से बचने का दे दो मुझको उपचार कोई

पढ़ा-लिखा सभ्य समाज भी जब अश्लील कमेंट्स करता है
तब मेरी आँखों में क्रोध की ज्वाला का जहर भरता है
किस-किस को बातें सुनाऊँ यहाँ सब के सब तो बहरें है
सभी की बहनों पर, किसी न किसी की नज़रों के पहरें है
छेड़खानी की इन हरकत पर, स्त्री की क्यूं लाचार कोई
भैया मेरे, इस रक्षाबंधन, ना देना मुझको उपहार कोई
बस हैवानी नज़रों से बचने का दे दो मुझको उपचार कोई

बाँध रही हूँ राखी तुमको, बस इतना सा वचन देना तुम 
पराई स्त्री को भी अपनी माता और बहन मान लेना तुम 
इतना सा वचन निभाना, राखी का सारा क़र्ज़ उतर जायेगा
और सभी ऐसा समझने लगे, तो ये समाज भी सुधर जायेगा
अपनी राखी की कीमत माँगूं, माँग रही ना अधिकार कोई
भैया मेरे, इस रक्षाबंधन, ना देना मुझको उपहार कोई
बस हैवानी नज़रों से बचने का दे दो मुझको उपचार कोई.

Friday, August 5, 2011

सरकारी जनलोकपाल की प्रति अब हम जलाएंगे


जनलोकपाल मुद्दे पर अब सडकों पर उतर आयेंगे
सरकारी जनलोकपाल की प्रति अब हम जलाएंगे


जनलोकपाल कानून पर संसद क्या बहस करेगी
सख्त हुआ कानून तो नेताओं की कैसे जेब भरेगी
जब संसद में राजा, कलमाड़ी जैसे तस्कर बैठे हो
स्विस बैंकों में काले पैसे की तिजोरी भरकर बैठे हो
ऐसे सांसद क्या भ्रष्टाचार विरोधी कानून बनायेंगे 
सांसदों को छोडो अब तो हम ही हंगामा मचाएंगे
जनलोकपाल मुद्दे पर अब सडकों पर उतर आयेंगे
सरकारी जनलोकपाल की प्रति अब हम जलाएंगे


सरकारी बिल में सारे समाजसेवी संगठन तो आते है
पर आधे से ज्यादा सरकारी अधिकारी नहीं आते है
पुलिस,लाईसेंस,बिजली,नगरपालिका,​सड़कें,पेंशन
शिक्षा, उधोग, अस्पताल, रोडवेज, बस की टेंशन 
ये विभाग कोई भी लोकपाल दायरे में ना आयेंगे
इन समस्याओं के निदान को भला हम कहाँ जायेंगे
जनलोकपाल मुद्दे पर अब सडकों पर उतर आयेंगे
सरकारी जनलोकपाल की प्रति अब हम जलाएंगे


प्रधानमंत्री कोई घोटाला करता है तो करने दो
सी. बी. आई. को ही बस उसकी जांच करने दो
जज रिश्वत लेकर न्याय सुनाये, कोई बात नहीं
सांसदों का व्यवहार भी लोकपाल के हाथ नही
आधे सदस्य तो समिति में सत्ता पक्ष से जायेंगे
न्याय मांगने वाले क्या भैंस के आगे बीन बजायेंगे
जनलोकपाल मुद्दे पर अब सडकों पर उतर आयेंगे
सरकारी जनलोकपाल की प्रति अब हम जलाएंगे
-विभोर गुप्ता

Sunday, July 24, 2011

भूमि अधिग्रहण-


आखिर कैसी है ये सब नीतियाँ सरकार की
नहीं है चिंता कोई किसानों के रोजगार की
विकास की दौड़ में ये रुख कहाँ मोड़ दिया
भू-रक्षकों का भूमि से ही नाता तोड़ दिया
वो जो  बनकर अन्नदाता, मानवता दिखलाते रहे
देश को पालने को, अपना खून पसीना बहाते रहे
देकर लालच उन्ही को, उन्ही की जेबें ली खंगाल
हड़प कर जमीं उनकी, कर दिया सबको कंगाल
ये कैसा विकास है, ये कैसा शहरीकरण है
कृषि योग्य भूमि का ही हो रहा अधिग्रहण है
महल खड़े करने है आपको शौक से कीजिये
देने है आवास सभी को, गर्व से दीजिये
पर उस जमीं पर क्यों, जहाँ फसलें लहराती है
एक अनपढ़ को भी अन्नदाता का एहसास कराती है
जहाँ बैसाख में गेंहू की सुनहरी बालियाँ चमकती है
तो बरसात के बाद बासमती की खुशबू महकती है
वो चने की खन- खन वो गन्ने के खेत
अब क्यूं नजर आ रही है वहां उडती हुई रेत
जिस खेत की मिटटी, सोना है उगलती
उसी मिटटी को आज, विषैली नागिनें है निगलती
बोलते हो तुम हम सड़कें है बना रहे
सड़कें बनने के फायदे भी तुम गिना रहे
पर क्या तुम सोचते हो, तुम कितनो को उजाड़ रहे
भविष्य ना जाने, कितनो का बिगाड़ रहे
आज भले ही लालच देकर, डाल रहे हो फूट
कल कहीं वो ही ना करने लगे उसी सड़कों पर लूट
तुम जो आज कृषि भू पर इमारतें हो चिन रहे
सच तो यह है, हजारों लोगों के रोजगार है छिन रहे
कृषि भूमि छीन कर काट रहे हो किसानों के हाथ क्यूं
पीठ पर भले ही मारो पर पेट पर लात क्यूं
ख़ुशी मना लो आज, कल तुम भी पछताओगे
नहीं रहेगी जमीं तो फिर अन्न कहाँ उगाओगे
पैसा तो रहेगा खूब, पर होगी नहीं रोटी तब
खिलाओगे क्या उसको, रोटी होगी बेटी जब
वक़्त अभी भी है अन्न की कमी से बचने का
विकास से पहले भविष्य के बारे में सोचने का
लाओ नये कानून, बंद करो अब दलाली को
फूलों को उजाड़कर न रुलाओ चमन के माली को
किसान नहीं बहाता पसीना, अपने पेट के लिए
वो पैदा करता है अन्न, पूरे देश के लिए
उसी अन्नदाता के साथ ये अन्याय क्यूं हो रहा
शहरीकरण की दौड़ में वो अपने खेत क्यूं खो रहा
नहीं है मेरा प्रश्न किसी देश या प्रदेश सरकार से
कर रहे जो भू दलाली या किसी ठेकेदार से
मैं तो पूछता हूँ केवल बुद्धिजीवी समाज से
किसी भविष्य से नहीं बल्कि वर्तमान आज से
मानता हूँ है जरूरत आवास और मकान की
सड़कें, कारखानें, शोपिंग माल और दुकान की
पर क्या इन सब के लिए बंजर कर दे जमीं
कृषि योग्य भूमि की क्या कोई जरूरत नहीं
जिस तरह से जनसँख्या देश की है बढ़ रही
बेलगाम महंगाई दिन-प्रतिदिन है चढ़ रही
पर राहू के हाथो ये कैसा चंद्रग्रहण हो रहा
सोना उगलती जमीन का क्यों अधिग्रहण हो रहा
अब तो उपजाऊ जमीं का अधिग्रहण बंद कीजिये
देश की अन्न भूमि का दलालिकरण बंद कीजिये.
- विभोर गुप्ता

Saturday, July 16, 2011

RSS का हाथ-


अभी हाल ही में कांग्रेस पार्टी की मीटिंग चल रही थी, मुद्दा था, कहाँ-कहाँ है RSS का हाथ? दिग्विजय सिंह उस मीटिंग का संचालन कर रहे थे. दिग्विजय सिंह बता रहे थे कि RSS का हाथ अन्ना हजारे के पीछे है, बाबा रामदेव के पीछे है, बीजेपी के पीछे भी है. तभी एक कार्यकर्ता बोला, वो देखो वहां भी है RSS का हाथ!!! दिग्ग्विजय बोले, कहाँ? कार्यकर्ता इशारा करते हुए बोला, वहां. दिग्विजय बोले,  अबे चुप, ये RSS का हाथ नहीं, कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह है, पंजा!!!

-विभोर गुप्ता 

Friday, July 15, 2011

अच्छा है हमलावर दोषी पकडे ही ना जाए

(मित्रों, क्षमा चाहता हूँ कि आज एक ऐसी रचना पोस्ट कर रहा हूँ, जिसमे से कायरता की बू आ रही हो. पर मजबूरी है, ऐसा लिखना पड़ रहा है, क्योंकि हमारी सरकार और हमारे कानून तो आतंकियों को सजा नहीं दिला सकते है. आप सभी जानते ही है कि अजमल कसाब और अफजल गुरु के साथ क्या हो रहा है....अगर मैंने कुछ सच लिखने की कोशिश की हो या आप मुझसे सहमत हो तो मुझे बताये, आपके सुझाव एवं प्रतिक्रिया का स्वागत है....) -विभोर गुप्ता

एक और मुद्दा राजनीतिक केंद्र बनने को तैयार है
एक बार फिर मुंबई पर हुआ आतंकियों का वार है
फिर ना कहीं आतंकी दोषियों पर सियासत गरमाए
इससे तो अच्छा है हमलावर दोषी पकडे ही ना जाए

वैसे भी, आजकल देश में महंगाई का दौर बढ़ा है
इन दिनों मुर्गों और बकरों का भाव भी चढ़ा है
फिर ना कोई जेलों में ताजा चिकन-बिरयानी खाए
इससे तो अच्छा है हमलावर दोषी पकडे ही ना जाए

आवाम देश की गरीबी, भूखमरी से जूझ रही है
और सिंहासन को दोषियों को पकड़ने की सूझ रही है
फिर ना किसी की सुरक्षा पर करोड़ों-अरबों रूपये बहायें
इससे तो अच्छा है हमलावर दोषी पकडे ही ना जाए

आतंकी हमले के दोषी को पकड़ने से भी क्या होगा
चलेंगे सालो साल मुक़दमे, इससे ज्यादा क्या होगा
फिर ना जेल में कोई आतंकी बेख़ौफ़ आराम फरमाए
इससे तो अच्छा है हमलावर दोषी पकडे ही ना जाए

अफजल को फांसी मुक़र्रर, मिली नहीं अब तक भी
आतंक से थर्राया देश, पर सत्ता हिली नहीं अब तक भी
फिर अफजल, कसाब जैसे कानून को ठेंगा दिखलायें
इससे तो अच्छा है हमलावर दोषी पकडे ही ना जाए.
-विभोर गुप्ता

Wednesday, July 13, 2011

जीवन के छब्बीस वर्षों में-

(आज जब मैंने अपने जीवन के छबीस बसंत पूरे कर लिए है, तो आज मैं पीछे मुड कर देखता हूँ और सोचता हूँ, कि पिछले छब्बीस सालों में मैंने क्या खोया और क्या पाया? प्रस्तुत है अंतर्मन की एक रचना, अपने जन्म-दिवस के मौके पर…..)

क्या खोया और क्या पाया, जीवन के छब्बीस वर्षों में
किससे कितना क्या लिया-दिया, जीवन के छब्बीस वर्षों में

माँ की ममता अपार मिली, पिता का भरपूर प्यार मिला
भाई बहन के स्नेह से मुझको रंग बिरंगा संसार मिला
दादी दादा का दुलार सही, सब रिश्तेदारों का लाड मिला
सब यारों ने प्रीत निभाई, सभी से सहयोग बे-आड़ मिला
खुशियाँ इतनी बटोरी मैंने, जीवन के छब्बीस वर्षों में
जगह नही थी रखने को भी, जीवन के छब्बीस वर्षों में
किस्मत का भरपूर धनी हूँ, जीवन के छब्बीस वर्षों में
सभी के उपकारों का मैं ऋणी हूँ, जीवन के छब्बीस वर्षों में

पाने-लेने की बात करूँ, तो मेरी बांछें खिल जाती है
पर जब देने का चर्चा हो, तो रूह तक मेरी हिल जाती है
जीवन के छब्बीस साल खो दिए, माँ-बाप को आंसू देने में
जिससे जितना लिया है मैंने, कसर नहीं छोड़ी उनको गम देने में
झूठे वादों के गुलदस्तें थमाए, जीवन के छब्बीस वर्षों में
ना पूछो किस-किस को लूटा मैंने, जीवन के छब्बीस वर्षों में
ना जाने कितनों के सपनो को तोडा, जीवन के छब्बीस वर्षों में
बस अपनों से ही मुंह है मोड़ा, जीवन के छब्बीस वर्षों में

क्या खोया और क्या पाया, जीवन के छब्बीस वर्षों में
किस्से कितना क्या लिया-दिया, जीवन के छब्बीस वर्षों में.

Monday, July 11, 2011

अंतर्मन के प्रश्न-

(भारत देश में घटित कुछ घटनाएँ देख कर मेरा अंतर्मन अक्सर मुझसे कुछ प्रश्न करता है. ये घटनाएँ तरह तरह की घटनाएँ है; भ्रष्टाचार, दागी मंत्री और सांसद, हिन्दू-मुस्लिम दंगें, काला धन… परन्तु अंतर्मन का प्रश्न सिर्फ एक है की देश में इतना कुछ हो रहा है पर मैं क्यों मौन हूँ, मेरी कलम क्यों मौन है? प्रस्तुत है कुछ छंद…)

कोई बन रहा है तस्कर, कोई बन रहा लुटेरा
कोई कह रहा है अपने आप को डॉन है
किसी पे मुक़दमे है हत्या और बलात्कार के,
तो कोई बच्चों का भी करता शोषण यौन है
बैठे है वो सब सत्ता के गलियारों में,
और कहते है वो हमको पकड़ने वाला कौन है
दागियों का इतना है जोर, तो फिर बता ‘विभोर’,
ऐसे नेताओं के खिलाफ तेरी लेखनी क्यों मौन है.

जनता कर रही है त्राहि माम- त्राहि-माम,
पर भ्रष्टाचार में डूबी सत्ता मदहोश है
खून चूस कर जनता का ऐसे डाल दिया,
कि फूटा हुआ जन- जन में आक्रोश है
कानून की तो उड़ा रहे वो धज्जियां,
और कर डाला संविधान को बेहोश है
अंधियारों का ना कोई छोर, तो फिर बता ‘विभोर’,
ऐसी सत्ता के विरुद्ध तेरी वाणी क्यों खामोश है.

जल रहा है मुल्क आज मजहब की आग में,
दरबारों ने देश में ये बीज कैसे बोये है
खेल हुआ है ये कैसा नरसंहार का,
कि बूढ़े बापों के कन्धों ने भी बेटे अपने ढोये है
तार-तार हो रहा है देश प्रेम भारती का,
देख-देख पर्वत और सागर भी तो रोये है
हर तरफ मचा है शोर, तो फिर बता ‘विभोर’,
तेरी अंखियों के आज आंसू कहाँ खोये है.

करने चोरियों को, भरने तिजोरियों को,
देखो शासकों के कैसे हौंसलें बुलंद है
भरी हुई है गंदगियाँ इतनी सरकारों में,
की राजभवनों से भी आ रही है दुर्गन्ध है
कानों में ऊँगली डाल प्रशासन तो बहरा हुआ,
और काली पट्टी बाँधे कानून तो अंध है
तुझसे पूछती है भोर, जवाब दे ‘विभोर’,
सच्चाई को बोलने को तेरी बोलती क्यों बंद है.

-विभोर गुप्ता

Wednesday, July 6, 2011

माँ की सीख-

(एक बार एक लड़की ने मुझसे कहा की आप अच्छा लिखते हो. मैंने उससे कहा की कभी मुशायरे या कवि सम्मलेन में सुनने आ जाया करो, बोली की माँ ने मना किया है. मैंने कहा और क्या मना किया है माँ ने? तब उसने जो बताया, वो मैं आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ.)

किसी की चाहत की शराब, अपने होठों से तुम ना पिया करो
माँ कहती है मेरी, किसी अजनबी को अपना पता ना दिया करो

शातिर होते है दिल चुराने में, दिल की बातें लिखने वाले
मिलो किसी शायर से भले ही, पर बातें दिल की ना किया करो

रसों से भरी हुआ करती है पंक्तियाँ ग़ज़लों और गीतों की
सुनो तो गीतों को, पर गीतों के रस में डूब कर ना जिया करो

मुसाफिर है कवि और शायर तो, आज यहाँ कल कहीं और होंगे
छोड़ जायेंगे मझधार में तुमको, इन पर भरोसा ना किया करो

भौंरों की तो आदत है, फूलों और कलियों पर मंडराने की
कोई काम भले ही रुक जाये, मगर ‘विभोर’ के एहसान ना लिया करो.

-विभोर गुप्ता

Friday, July 1, 2011

कुंवारे लोग और देरी-(काल्पनिक)

कुछ साल पहले, मैं एक कार्यक्रम का संचालन कर रहा था. उस कार्यक्रम में अतिथि के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी जी आने वाले थे. उन्होंने अपनी राजनितिक परम्परा के अनुसार उस कार्यक्रम में चार घंटों की देरी के साथ आगमन किया. मैंने चुटकी लेते हुए कहा कि शादीशुदा मर्द देर से आये तो समझ में आता है, ये भला कुंवारे लोग क्यों देरी से आने लगे. अटल जी माइक पर आये और बोले, बेटा शादी ही तो नहीं हुई है, बाकि तो सब कुछ है.

 अभी कुछ दिन पहले मैं एक और कार्यक्रम का संचालन कर रहा था, जिसमे बहन जी मायावती जी अतिथि के रूप में आने वाली थी. वो भी उस दिन 3-4 घंटें की देरी से आई. मैंने फिर चुटकी लेते हुए कहा, कि शादीशुदा लोग देर से आये तो समझ में आता है, ये भला कुंवारे लोग क्यों देरी से आने लगे. मैंने सोचा की मायावती जी भी कुछ ऐसा ही जवाब देगी. मायावती जी मंच पर आई और बोली, लगता है अब तेरी भी मूर्तियाँ बनवानी पड़ेगी!!!

- विभोर गुप्ता

Saturday, June 25, 2011

राखी सावंत; एक अनबुझी पहेली


आज राखी सावंत के नाम से सभी लोग चिर-परिचित है, मुझे समझ नहीं आता राखी सावंत की प्रसिद्धि को क्या रूप दूँ. कुछ लोग प्रख्यात होते है, कुछ लोग विख्यात होते है, तो कुछ लोग कुख्यात भी होते है, पता नही राखी सावंत को किस श्रेणी में रखा जाये?

चाहे कुछ भी कहो कुख्यात या विख्यात, पर ये तो मानना पड़ेगा राखी सावंत ने बुलंदियों को छुआ है, नही तो 120 करोड़ की आबादी में भला ऐसी स्त्री को कौन जानता जो दिखने में स्त्री लगती भी नहीं है. राखी सावंत ने न सिर्फ बड़े पर्दों पर बल्कि छोटे पर्दों पर भी कमाल किया है, वो भी बिना किसी परदे के. और तो और टीवी चैनल्स ने तो राखी सावंत पर रियल्टी शो भी करा डाले. और नाम भी क्या रखा, राखी का इन्साफ, पता चला इंसान ही साफ़ हो गया!!!

एक दूसरा रियल्टी शो, जिसका नाम सुनकर ही लोगो को अचम्भा हुआ; राखी का स्वयंवर!!! अक्सर लोग कहते थे, अरे राखी का स्वयंवर? अरे इसका क्या स्वयंवर कराया, इस से अच्छा तो रेखा का स्वयंवर ही करा देते. और सब्जेक्ट भी कैसा कि, वो तो जब सुबह को सो कर उठती होगी, तो स्वयं ही वर लगती होगी?

मेरा एक मित्र भी गया इस रियल्टी शो में हिस्सा लेने के लिए, जैसे ही राखी सावंत ऑडिशन लेने के लिए आई, बिना मेक-अप के, मेरे मित्र ने तो राखी को देखते के साथ ही वोमिटिंग कर दी. उसके बाद 3 दिन तो वो दिल्ली के कलावती हॉस्पिटल में एडमिट रहा.

मेरे साथ एक लड़की पढ़ती थी, उसका भी नाम दुर्भाग्य से राखी सावंत ही था. पहले तो सब कुछ ठीक-ठाक था, पर बाद में जब से वो मिका वाला केस हुआ, तब से लोगो ने उसे चिढाना शुरू कर दिया, और राखी का स्वयंवर शो के दौरान तो वो बहुत ही ज्यादा परेशान हो गयी. आखिर में उसने सोचा कि अब तो अपना नाम ही बदलना पड़ेगा. वो मेरे पास आई और बोली की अच्छा सा कोई नाम बताओ, मैं परेशान हूँ राखी सावंत नाम से. मैंने सलाह दी की ऐसा कर सावंत हटा ले अपने नाम के पीछे से, राखी रहेगा तो कोई कुछ नही बोलेगा. उसने कहा ये सही है, उसने ये प्रोपोजल अपने पापा का सामने रखा तो उसके पापा भड़क गए, कि चाहे कुछ भी हो जाये, सावंत नही हटेगा. ये हमारा सरनेम है, इससे हमारे खानदान की इज्जत का पता चलता है. यहाँ तो लड़की की इज्जत खतरे में है, पर उसके पापा तो अपने खानदान की इज्जत के बारे में सोच रहे है.

वो फिर मेरे पास आई, और अपनी समस्या बताई, तो मैंने कहा कि अब तो अपना राखी नाम को ही बदल ले. पर ये क्या, राखी नाम बदलने को सुनकर उसकी मम्मी ने हंगामा शुरू कर दिया कि राखी नाम नहीं बदला जायेगा. मैंने पूछा ऐसा क्यों? बोली- इसका राखी नाम इसलिए है क्योंकि ये रक्षाबंधन के दिन पैदा हुई थी!!!

अच्छा लोजिक है. मैंने कहा- आंटी अगर ये ईद के दिन पैदा होती तो इसका नाम क्या सन्वैया रख देती? या करवा चौथ के दिन पैदा होती तो करवी सावंत? पर मेरी मित्र की मम्मी मानने के लिए तैयार ही नहीं थी. मेरी मित्र बोली, कुछ ऐसा नाम बताओ जिससे मेरे मम्मी-पापा दोनों संतुष्ट हो जाये. मैंने कहा तो तू ऐसा कर डोरी सावंत रख ले, दोनों के लिये सही रहेगा ये.

आखिर में उस लड़की ने अपना नाम राखी सावंत से बदल कर रक्षा सावंत रख लिया. प्रिय मित्रों कही आप या आप के कोई जानकर  तो ऐसी किसी समस्या से तो नही ग्रसित है? क्योंकि ये राखी सावंत नाम का एटम-बम्ब कही पर भी फूट सकता है.

कुछ दिन पहले जब सानिया मिर्जा की शादी शोएब मालिक से हुई तो बहुत लोगो के मुंह से मैंने अक्सर कहते हुए सुना कि कोई राखी सावंत को भी ले जाये. पर मैं इस बात के हमेशा ही विरोध में रहा हूँ. ये मत सोचिये कि राखी सावंत बेकार है, मैं तो सोचता हूँ कि इसे हथियार के रूप में भी इस्तमाल किया जा सकता है. मैं भारत सरकार से गुजारिश करता हूँ की राखी सावंत को जैविक हथियार घोषित किया जाये. अगर भविष्य में कोई देश हम पर हमला करे तो उस पर यह जैविक हथियार का इस्तमाल किया जाये. जिस दिन भारत सरकार राखी सावंत को जैविक हथियार घोषित कर देगी,चाइना और पाकिस्तान तो उसी दिन से भारत के आगे हाथ जोड़ कर खड़े हो जायेंगे, कि हमें माफ़ करो, चाहे हमसे अपना कश्मीर ही क्या हमारा भी कुछ हिस्सा ले लो, पर कृपया राखी सावंत तो हमारे ऊपर मत इस्तमाल करना. 

प्रिय मित्रों, ये थी राखी सावंत;एक अनबुझी पहेली, अनबुझी इसलिए क्योंकि राखी सावंत नाम की पहेली को सुलझाना मुमकिन ही नहीं, नामुनकिन है. आपको कैसा लगा, जरूर बताइयेगा, आपके सुझावों औरप्रतिक्रियाओं का स्वागत है. अगली बार फिर एक नये विषय के साथ हाजिर होंगे, तब तक के लिए जय राखी सावंत!!!

- विभोर गुप्ता (www.vibhorgupta.webs.com)

Thursday, June 23, 2011

वो काली रात

हिंसक-क्रूर पशुओं के हाथों, हैवानियत मानवता को कुचल रही थी
क्रांति-भावना के दमन को, सत्ता यौवन की भाँति मचल रही थी
काली रात में रोया था लोकतंत्र, तानाशाही का मचा था कोहराम
पर सिक्कों की खन-खन पर, तवायफें घूँघरू बांधें उछल रही थी.

Tuesday, June 21, 2011

आत्महत्या का अधिकार-

ना चहिये मुझे सूचना का अधिकार,
ना ही चहिये मुझे शिक्षा का अधिकार
गर कर सकते हो मुझ पर कोई उपकार
तो दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार

क्या करूँगा मैं अपने बच्चों को स्कूलों में भेजकर
जबकि मैं खाना भी नही खिला सकता उन्हें पेटभर
भूखा बचपन सारी रात, चाँद को है निहारता 
पढ़ेगा वो क्या खाक, जिसे भूखा पेट ही है मारता

और अगर वो लिख-पढ़ भी लिए ,तो क्या मिल पायेगा उन्हें रोजगार
नही थाम सकते ये बेरोजगारी तो दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार

मेरे लिए, सैकड़ो योजनाये चली हुई है, सरकार की
सस्ता राशन, पक्का मकान, सौ दिन के रोजगार की
पर क्या वास्तव में मिलता है मुझे इन सब का लाभ
या यूँ ही कर देते हो तुम, करोड़ो-अरबो रुपये ख़राब

अगर राजशाही से नौकरशाही तक, नही रोक सकते हो यह भ्रष्टाचार,
तो उठाओ कलम, लिखो कानून, और दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार.

कभी मौसम की मार, तो कभी बीमारी से मरता हूँ
कभी साहूकार, लेनदार का क़र्ज़ चुकाने से डरता हूँ
दावा करते हो तुम कि सरकार हम गरीबों के साथ है
अरे सच तो ये है, हमारी दुर्दशा में तुम्हारा ही हाथ है 

मत झुठलाओ इस बात से, ना ही करो इस सच से इंकार 
नहीं लड़ सकता और जिन्दगी से, दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार

मैं अकेला नही हूँ, जो मांगता हूँ ये अधिकार,
साथ है मेरे, गरीब मजदूर, किसान और दस्तकार
और वो, जो हमारे खिलाफ आवाज उठाते है
खात्मा करने को हमारा, कोशिशें लाख लगाते है

पूर्व से पश्चिम तक, उत्तर से दक्षिण तक, मचा है हाहाकार
खत्म कर दो किस्सा हमारा, दे दो मुझे आत्महत्या का अधिकार

क्यों कर रहे हो इतना सोच विचार
जब चारो और है बस यही गुहार
खुद होंगे अपनी मौत के जिम्मेदार
अब तो दे ही दो, आत्महत्या का अधिकार.
- विभोर गुप्ता (9319308534)