ये रचना डा. हरिओम पंवार को समर्पित है, डा. हरिओम पंवार वीर रस के जाने -माने हिंदी कवि है. वो मेरे लिए एक आदर्श रहे है, मेरी दिली तमन्ना रही है कि मैं भी उन्ही के जैसा एक अच्छा कवि बनूँ. वो अपनी रचनाओं से सदा संसार को महकाते रहे. भगवान उन्हें दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करें.
जिसने गायी है घायल घाटी के दिल की धड़कन,
और सुनाई है मंचों से वीर सैनिकों के दिल की तडपन
जो बनकर संविधान भारत का, लाल किले से बोले है
जिनकी कविता में अग्निगंधा और शब्दों में शोलें हैं
वो जब भी मंचों से देशभक्ति वाले गीत गाते है,
श्रोताओं के अंदर क्रांति का एक जूनून ले आते है
जिनकी कविता कारगिल में, दुश्मनों पर शूल बनी,
और तिरंगे में लिपटे शहीदों की अर्थी पर फूल बनी
पोखरण विस्फोटों के बाद जब भारत पर प्रतिबंधों का साया था,
दिल्ली का हौंसला बढ़ाने को, तब उसने दिल्ली में गाया था
अब कोई भी प्रतिबन्ध हमें बिलकुल भी नहीं डरा सकता
सी.टी.बी.टी. पर दिल्ली के हस्ताक्षर नही करा सकता
अयोध्या की आग पर भड़की जानता को समझाया था
देश जला देगी, ये चिंगारी मजहब की, उसने गाया था
जिसने अमर शहीदों की यादों से कविता को महकाया है
और जिसने सदैव भूखी अंतड़ियों की पीड़ा को गाया है
कायर सत्ता को दर्पण दिखलाने को कविता जिनकी हथियार है
वीर रस के वो ओजस्वी कवि डा. हरिओम पंवार है
उनकी कविता में निराला, दिनकर, भूषण की पहचान है
माना उन्हें अपना आदर्श, मुझको शत-शत अभिमान है.