नमस्कार...


मैं विभोर गुप्ता आपका हार्दिक स्वागत करता हूँ | इस ब्लॉग पर आपको मेरी काव्य रचनाओं का संग्रह मिलेगा |
मेरी वेबसाइट पर जाने के लिए क्लिक करे www.vibhorgupta.webs.com

अगर आपको मेरा ब्लॉग अच्छा लगा तो आप इसे follower पर क्लिक कर follow कर सकते है | मैं आपका सदैव आभारी रहूँगा |

धन्यवाद |

Wednesday, August 24, 2011

अपाहिज सत्ता-


राजनीति की कीचड से आज संसद की गलियाँ गन्दी है
सत्य, धर्म, ईमानदारी तो खादी के घर में बन्दी है
अंधियारों में खोट दिखाई नहीं देगी उनको, चूंकि
नैतिकता का चश्मा टूट गया, इसलिए सत्ता अंधी है.

यूं तो कहने को सरकार लोकतंत्र की प्रहरी है
पर आजकल तो उसे भी आई नींद गहरी है
पूरा देश चीख रहा है, अन्ना तुम संघर्ष करो
पर आवाजें सुनाई नहीं देती क्योंकि सत्ता बहरी है.

गद्दी पर जो बैठे है उनका काम ही है दलाल का
क्यों चाहे वो बने सख्त कानून जनलोकपाल का
देश ने पूछा उनसे, तुम भ्रष्टाचार क्यों मिटाते नहीं
पर जब शासन हो गूंगा तो कैसे जवाब दे वो सवाल का.

वो भ्रष्टाचार मिटाने की बातें तो करते दिन-रात है
पर पर्दों के पीछे वो घोटालेबाजों के ही साथ है
हमने कहा, दण्डित करो कलमाड़ी और राजाओं को
पर कैसे, सत्ता के पास तो हाथ है ना लात है.

गांधी वाली खादी अब ईमानदारी से विहीन हो गयी
माँ भारती अब तानाशाहों के घर में पराधीन हो गयी
गूंगे भी है, बहरें भी है, अन्धें भी है, लंगड़े भी है
लगता है दिल्ली अब नाकारे अपाहिजों के आधीन हो गयी.
-विभोर गुप्ता

Tuesday, August 16, 2011

तानाशाही सत्ता-


तानाशाही सत्ता के आगे लोकतंत्र कहाँ जिन्दा है
आंसू भर-भर कर आज तिहाड़ जेल भी शर्मिंदा है
तिरंगे ने बोला है आज, लाल किले की दीवारों से
तेरी ईंटों को भी खतरा है अब, तेरे ही पहरेदारों से

राजघाट चीख रहा है सत्याग्रह के अपमानों पर
कैसा खून बिखेरा तुमने ये गाँधी के अरमानो पर
प्रजा के सेवक प्रजा के अधिकारों का दमन कर बैठे
शांति के राही को ही अशांति जुर्म में अन्दर भर बैठे

लगता है शायद तुम जनता की ताकत को भूल गए
सत्ता के मद में होकर चूर, अत्याचारों में झूल गए
अब वक़्त आ गया है, तुम्हारी औकातें बतलाने का
तुम हिटलरों को जन-गण-मन की ताकत दिखलाने का

देखते है तुम अब किस-किस को भरोगे जेलों में
जाग्रित जनता निकल पड़ी है सडकों, बसों, रेलों में
अब और तुम अपनी मनमर्जी नहीं चला पाओगे
मनमर्जी तो तब चलेगी गर गद्दी पर टिक जाओगे.
-विभोर गुप्ता

काले अंग्रेज-


जिनके चेहरे काले है काले कारनामों से,
       वो अब गोरों अंग्रेजों के भी बाप बन गए है
भ्रष्टाचार मिटाने की किसे पड़ी है यारों,
        वो सब जनता के लिए अभिशाप बन गए है
कर गिरफ्तार अन्ना हजारे को आज वो
        सत्याग्राही गांधी के विरुद्ध पाप बन गए है
अंग्रेज तो अब देश से चले गए है इसीलिए
         सत्ताधारी ही फिरंगी अपने आप बन गए है
-विभोर गुप्ता

Saturday, August 13, 2011

राखी की कीमत-


एक बहन अपने भाई को राखी बांधती है, भाई अपनी बहन से पूछता है कि उसे क्या उपहार चाहिए. बहन कहती है...

ना पैसा माँगू, ना कंगन माँगू, ना माँगू बाईक या कार कोई
भैया मेरे, इस रक्षाबंधन, ना देना मुझको उपहार कोई
कदम-कदम पर हवस के शिकारी, जो घात लगाये बैठे है
बस उनके आघातों से बचने का, दे दो मुझको उपचार कोई

चाहे पैदल चलूँ या रिक्शा में, बस में हूँ या रेलों में
सडकों पर रहूँ या मैदानों में, बाजारों में हूँ या मेलों में
इक्कीसवीं सदीके समाज की कामुक नजरें जब मुझ पर टिकती
इंसानी पशुओं की देख शरारत तब मेरी साँसें तक रूकती 
लगता है मुझको जैसे धरा पर छाने वाला है अंधकार कोई
भैया मेरे, इस रक्षाबंधन, ना देना मुझको उपहार कोई
बस हैवानी नज़रों से बचने का दे दो मुझको उपचार कोई

ऑफिस में मेरा बॉस मुझको अपने केबिन में बुलाता कितनी बार
किसी न किसी बहाने से मुझे छूने की कोशिश करता कितनी बार
सीनियर हो या जूनियर हो, अब नहीं है किसी को लाज कोई
बहनें तो सबकी होती है, भला क्यों नहीं समझता आज कोई
कितना भी लज्जित कर लो, होता नहीं है शर्मशार कोई
भैया मेरे, इस रक्षाबंधन, ना देना मुझको उपहार कोई
बस हैवानी नज़रों से बचने का दे दो मुझको उपचार कोई

पढ़ा-लिखा सभ्य समाज भी जब अश्लील कमेंट्स करता है
तब मेरी आँखों में क्रोध की ज्वाला का जहर भरता है
किस-किस को बातें सुनाऊँ यहाँ सब के सब तो बहरें है
सभी की बहनों पर, किसी न किसी की नज़रों के पहरें है
छेड़खानी की इन हरकत पर, स्त्री की क्यूं लाचार कोई
भैया मेरे, इस रक्षाबंधन, ना देना मुझको उपहार कोई
बस हैवानी नज़रों से बचने का दे दो मुझको उपचार कोई

बाँध रही हूँ राखी तुमको, बस इतना सा वचन देना तुम 
पराई स्त्री को भी अपनी माता और बहन मान लेना तुम 
इतना सा वचन निभाना, राखी का सारा क़र्ज़ उतर जायेगा
और सभी ऐसा समझने लगे, तो ये समाज भी सुधर जायेगा
अपनी राखी की कीमत माँगूं, माँग रही ना अधिकार कोई
भैया मेरे, इस रक्षाबंधन, ना देना मुझको उपहार कोई
बस हैवानी नज़रों से बचने का दे दो मुझको उपचार कोई.

Friday, August 5, 2011

सरकारी जनलोकपाल की प्रति अब हम जलाएंगे


जनलोकपाल मुद्दे पर अब सडकों पर उतर आयेंगे
सरकारी जनलोकपाल की प्रति अब हम जलाएंगे


जनलोकपाल कानून पर संसद क्या बहस करेगी
सख्त हुआ कानून तो नेताओं की कैसे जेब भरेगी
जब संसद में राजा, कलमाड़ी जैसे तस्कर बैठे हो
स्विस बैंकों में काले पैसे की तिजोरी भरकर बैठे हो
ऐसे सांसद क्या भ्रष्टाचार विरोधी कानून बनायेंगे 
सांसदों को छोडो अब तो हम ही हंगामा मचाएंगे
जनलोकपाल मुद्दे पर अब सडकों पर उतर आयेंगे
सरकारी जनलोकपाल की प्रति अब हम जलाएंगे


सरकारी बिल में सारे समाजसेवी संगठन तो आते है
पर आधे से ज्यादा सरकारी अधिकारी नहीं आते है
पुलिस,लाईसेंस,बिजली,नगरपालिका,​सड़कें,पेंशन
शिक्षा, उधोग, अस्पताल, रोडवेज, बस की टेंशन 
ये विभाग कोई भी लोकपाल दायरे में ना आयेंगे
इन समस्याओं के निदान को भला हम कहाँ जायेंगे
जनलोकपाल मुद्दे पर अब सडकों पर उतर आयेंगे
सरकारी जनलोकपाल की प्रति अब हम जलाएंगे


प्रधानमंत्री कोई घोटाला करता है तो करने दो
सी. बी. आई. को ही बस उसकी जांच करने दो
जज रिश्वत लेकर न्याय सुनाये, कोई बात नहीं
सांसदों का व्यवहार भी लोकपाल के हाथ नही
आधे सदस्य तो समिति में सत्ता पक्ष से जायेंगे
न्याय मांगने वाले क्या भैंस के आगे बीन बजायेंगे
जनलोकपाल मुद्दे पर अब सडकों पर उतर आयेंगे
सरकारी जनलोकपाल की प्रति अब हम जलाएंगे
-विभोर गुप्ता