नमस्कार...


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Thursday, March 31, 2011

इंतज़ार


यूँ तो लब आज भी इकरार से डरते है,
पर मेरे गीत आज भी तेरा इन्तजार करते है

चेहरे पर है झुर्रियां, बाल हो गए है सफ़ेद,
याद में तेरी, आईने  के सामने फिर भी संवरते है

विषय तो नहीं हो शायद तुम किसी लेख का,
फिर भी, किस्सों से तुम्हारे, डायरी रोज भरते है

मौसम चाहे ना भी हो, श्रावन या भादौ का,
बादल है कि आंसुओं के, रोज आँखों से झरते है

बीते लम्हों को वक़्त न जाने हो गया है कितना
पर वो ही लम्हें आज भी आँखों से गुजरते है

Thursday, March 10, 2011

सरस्वती-वंदना


हे वीणावादिनी, तुझको नमन करता हूँ मैं,
तन, मन, धन, तुझको अर्पण करता हूँ मैं

माँ सरस्वती, तेरे चरणों में, मेरा केवल एक निवेदन है
ना कांपे हाथ लिखते-लिखते सच को, बस यही आवेदन है
चाँदी के सिक्कों में बिके कविता, ऐसी मेरी चाह नहीं है
बैठूं राज्यसभा के अंदर जाकर, वो भी मेरी राह नहीं है

करना दया माँ शारदे, मेरी वाणी को देना इतना बल
स्वपन में भी पास ना भटके, झूठ, मक्कारी, कपट और छल
देना वरदान माँ मुझको, मेरी लेखनी कभी भी मरे नहीं
सत्ता और सिंहासन के आगे भी, लेखनी मेरी डरे नहीं

शब्द-शब्द मेरी कविता का, देश,धर्म व संस्कृति पर अर्पित हो,
मेरी कलम, मेरी वाणी, सदैव मात्रभूमि के प्रति समर्पित हो
इतना आशीष देना माँ, कलम मेरी तम को ललकार हो,
चाहे जल कर भी, करे रोशनी वहां, जहाँ पर अंधकार हो

हे विद्यादायिनी, वीणावादिनी, देना सभी को इतना ज्ञान,
मिट जाए तम इस धरा से, हो समाज का कल्याण
देना बुद्धिबल सभी को ऐसा, ना कोई किसी पर हावी हो,
'वसुधैव कुटुम्बकम' का शब्दार्थ, पूरे विश्व पर प्रभावी हो

हे वीणावादिनी, तुझको नमन करता हूँ मैं,
तन, मन, धन, तुझको अर्पण करता हूँ मैं